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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन सिक दृष्टि से सोचने वाले लगभग सभी विद्वान् उत्तर बिहार की पावा को ही भगवान् महावीर की निर्वाण-भूमि मानने लगे हैं।'
डा० जेकोबी ने अपने अभिमत के समर्थन के लिए अपने लेख में डा० शान्टियर की कुछ एक धारणाओं का उल्लेख किया है। पर उल्लेखनीय बात यह है कि शान्टियर द्वारा ठहराये गये महावीर और बुद्ध के काल-निर्धारण को डा० जेकोबी ने आंशिक मान्यता भी नहीं दी है। लगता है, शान्टियर ने अपने लेख-काल में बुद्ध-निर्वाण-काल-सम्बन्धी जो ऐतिहासिक धारणा प्रचलित थी, उसे केन्द्र-बिन्दु मानकर अन्य तथ्यों का जोड़-तोड़ बिठाया है। डा० जेकोबी की दूसरी समीक्षा इससे सोलह वर्ष बाद होती है। तब तक बुद्ध-निर्वाणसम्बन्धी ऐतिहासिक धारणा नवीन रूप ले लेती है और डा० जेकोबी उसे अपना लेते हैं। हमें इस बात को नहीं भूलना है कि डा० जेकोबी की दूसरी समीक्षा भी ३२ वर्ष पुरानी हो चुकी है और इस अवधि में महावीर और बुद्ध के निर्वाण से सम्बन्धित नई-नई धारणाएं सामने आ रही हैं; अतः एतद्विषयक काल-निर्णय में हमें नवीनतम दृष्टिकोणों से ही सोचना अपेक्षित होता है।
डा० के० पी० जायसवाल जनरल ऑफ बिहार एण्ड ओरिस्सा रिसर्च सोसायटी के सम्पादक एवं प्रसिद्ध इतिहासकार डा० के० पी० जायसवाल के द्वारा इस दिशा में उल्लेखनीय प्रयत्न हुआ है। उन्होंने अपनी समीक्षा में यह माना-बौद्ध पिटकों में वर्णित महावीर के निर्वाण-प्रसंग ऐतिहासिक निर्धारण में किसी प्रकार उपेक्षा के योग्य नहीं हैं। सामगाम सुत्त में बुद्ध महावीर निर्वाण के समाचार सुनते हैं और प्रचलित धारणाओं के अनुसार इसके दो वर्ष पश्चात् बुद्ध स्वयं निर्वाण को प्राप्त होते हैं। बौद्धों की दक्षिणी परम्परा के अनुसार बुद्ध-निर्वाण ई० पू० ५४४ में हुआ ; अतः महावीर का निर्वाण ई० पू० ५४६ में होता है। महावीर-निर्वाण और विक्रमादित्य
उन्होंने इसके साथ-साथ 'महावीर के ४७० वर्ष बाद विक्रमादित्य' इस जैन-मान्यता पर भी एक नूतन संगति बिठाने का प्रयत्न किया था। उनका कहना था; "जन-गणना में भगवान् महावीर के निर्वाण और विक्रम संवत् के बीच ४७० वर्ष का अन्तर माना जाता है। वह वस्तुतः सरस्वती गच्छ की पढावली के लेखानुसार निर्वाण और विक्रम-जन्म के बीच का अन्तर है। विक्रम १८ वें वर्ष में राज्याभिषेक हुआ और उसी वर्ष से संवत् प्रचलित हुआ। इस प्रकार महावीर-निर्वाण से (४७०+१८) ४८८ वर्ष पर विक्रम संवत्सर का आरम्भ हुमा पर जैन-गणना से उक्त १८ वर्ष छूट गये; अतः निर्वाण से ४७० वर्ष पर ही संवत्सर माना जाने लगा, जो स्पष्ट भूल है।"3
१. इसी प्रकरण में "महावीर का निर्वाण किस पावा में ?" के अन्तर्गत इसकी चर्चा की
जा चुकी है। २. Journal of Bihar and Orissa Research Society, vol. XIII, pp.
240-246. ३. Journal of Bihar and Orissa Research Society vol. XIII, p. 246.
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