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इतिहास और परम्परा] काल-निर्णय सुत्त में तो सारिपुत्र भी बुद्ध से वार्तालाप करते हैं;' यह सर्वसम्मत तथ्य है कि भगवान् बुद्ध से बहुत पूर्व ही सारिपुत्र का देहावसान हो चुका था।
सम्मव स्थिति तो यह है कि महाशिलाकंटक और रथमुशल संग्राम के हो जाने के बहुत समय पश्चात् जो वैशाली-प्राकारभङ्ग का विषय अधूरा पड़ा था और कोणिक व उसके सेनापति आदि प्राकार-भङ्ग की नाना योजनाएं सोच रहे थे, वस्सकार तब भगवान् बुद्ध से मिला था।
यह धारणा इससे भी पुष्ट होती है कि जैन-परम्परा के अनुसार भी प्राकार-भङ्ग छद्म-विधि से किया जाता है और बुद्ध के मुख से वज्जियों की दुर्जयता सुनकर वस्सकार भी किसी छद्म-विघि को अपनाने की बात सोचता है। इस प्रकार अनेक कारण मिलते हैं, जिनसे यह भली-भांति स्पष्ट हो जाता है कि डा० जेकोबी का यह आग्रह कि युद्ध बुद्ध-निर्वाण के पश्चात् ही हुआ था, वास्तविक नहीं है।
पं० सुखलाला की तरह श्री गोपालदास पटेल व श्री कस्तूरमल बांठिया आदि विचारकों ने भी डा० जेकोबी के मत को दृढ़तापूर्वक माना है, पर, उसका एक मात्र कारण डा० जेकोबी के प्रमाणों का ही एकपक्षीय अवलो
डा० शान्टियर
डा० जेकोबी के प्रथम और द्वितीय समीक्षा-काल के बीच डा. शान्टियर द्वारा प्रस्तुत पहेली के निष्कर्ष तक पहुँचने का प्रयत्न हुआ। उनका एतद्विषयक लेख इण्डियन एन्टिक्वेरी, सन् १९१ में प्रकाशित हुआ है । डा० शान्टियर का निष्कर्ष है कि महावीर बुद्ध से १० वर्ष बाद निर्वाद प्राप्त हुए। बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ४७७ में हुआ और महावीर का निर्वाण ई० पू० ४६७ में। शान्टियर का यह निष्कर्ष मुख्य दो आधारों पर स्थित है-ई० पू० ४७७ में बुद्ध का निर्वाण-काल और महावीर की निर्वाण-भूमि पावा । आज यदि हम उस लेख को पढ़ते हैं तो स्पष्ट समझ में आ जाता है कि इतिहास के क्रमिक विकास में वे दोनों ही आधार सर्वथा बदल चुके हैं। किसी युग में यह एक ऐतिहासिक धारणा मानी जाती थी कि बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ४७७ में हुआ, पर आज की ऐतिहासिक धारणाओं में उक्त तिथि का कोई स्थान नहीं रह गया है। शान्टियर ने महावीर निर्वाण-सम्बन्धी बौद्ध समुल्लेखों को यह बताकर अयथार्थ माना है कि निर्वाण दक्षिण बिहार की पावा में हुआ था और बौद्ध पिटक उत्तर बिहार की पावा का उल्लेख करते हैं। सच बात तो यह है कि ऐतिहा
१. दीघ निकाय, महापरिनिव्वाण सुत्त। २. राहुल सांकृत्यायन ने सारिपुत्र की घटना का वहां होना शास्त्र-संग्राहकों की भूल
माना है। (देखें, बुद्ध चर्या पृ० ५२५) यदि वहां भूल से ही संकलित होती है, तो क्या
'वस्सकार की घटना' भी वहां भूल से ही संकलित नहीं हो सकती? ३. देखें, भगवान महावीर नो संयम धर्म, (सूत्रकृतांग नो छायानुवाद), पृ० २५७ से
२६२। ४. श्रमण, वर्ष १३, अंक ६, पृ०९।
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