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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : १
बुद्ध-निर्वाण के सम्बन्ध में दशों मत बहुत प्राचीन काल में भी प्रचलित थे और अब भी हैं।' डा० जेकोबी ने अपने इस लेख के प्रतिपादन में बुद्ध के निर्वाण-काल (ई० पू० ४८४) को निर्विकल्प और सत्य जैसा मान लिया और भगवान महावीर के जीवन-प्रसंगों को खींचतान कर उसके साथ संगत करने का प्रयत्न किया। ऐसा करके डा० जेकोबी ने महावीर और बुद्ध की समसामयिकता में एक नया भूचाल खड़ा कर दिया । डा० जेकोबी की वे धारणाएं कालमान की दृष्टि से लगभग ३२ वर्ष पुरानी भी हो चुकी हैं। इस अवधि में इतिहास बहुत कुछ नए प्रकार से भी स्पष्ट हुआ है। ऐसी स्थिति में डा० जैकोबी के निर्णयों को ही अन्तिम रूप से मान लेना जरा भी यथार्थ नहीं है।
पं० सुखलालजी व अन्य विद्वान्
डा० जेकोबी के इस मत को वर्तमान के कुछ विचारकों ने भी मान्यता दी है। पं० सुखलाल जी का कहना है : "प्रो० जेकोबी ने बौद्ध और जैन ग्रन्थों की ऐतिहासिक दृष्टि से तुलना करके अन्तिम निष्कर्ष निकाला है कि महावीर का निर्वाण बुद्ध-निर्वाण के पीछे ही अमुके समय के बाद ही हुआ है। जेकोबी ने अपनी गहरी छानबीन से यह स्पष्ट कर दिया है कि वज्जि-लिच्छिवियों का कोणिक के साथ जो युद्ध हुआ था, वह बुद्ध-निर्वाण के बाद और महावीर के जीवन-काल में ही हुआ। वज्जि-लिच्छिवी-गण का वर्णन तो बौद्ध और जैन दोनों ग्रन्थों में आता है, पर इनके युद्ध का वर्णन बौद्ध ग्रन्थों में नहीं आता है, जबकि जैन ग्रन्थों में आता है।"२
__ लगता है, पं० सुखलालजी ने डा० जेकोबी के मन्तव्यों को ज्यों-का-त्यों माना है। वे स्वतन्त्र रूप से इस विषय की तह में नहीं गये हैं । बहुत बार हम सभी ऐसा करते हैं । जो विषय हमारा नहीं है या किसी विषय की तह में जाने का हमें अवसर नहीं मिला है, तो किसी भी विद्वान् का उस विषय पर लिखा गया लेख हमारी मान्यता पा लेता है । यह अस्वाभाविक जैसा भी नहीं है। अनेक विषय अनेक जन-साध्य ही होते हैं और मान्यताओं का पारस्परिक विनिमय होता है।।
पण्डितजी ने यहां जेकोबी की दो बातों का महत्त्व दिया है। एक तो यह है-वज्जियों और कोणिक के युद्ध का वर्णन बौद्ध शास्त्रों में नहीं है और जैन शास्त्रों में है। प्रस्तुत विषय की निर्णायकता में यह कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं है। इस विषय में पहले बहुत कुछ लिखा जा चुका है। दूसरी बात यह है कि वह युद्ध बुद्ध-निर्वाण के पश्चात् और महावीर-निर्वाण के पूर्व
आ था। उक्त मान्यता का मूल आधार महापरिनिव्वाण सुत्त है, जिसके विषय में सामान्यतया यह कहा जाता है कि उसमें बुद्ध के अन्तिम जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन ही है। इसी सत्त में कोणिक का महामात्य वस्सकार वज्जी के विजय की योजना बुद्ध के समक्ष प्रस्तुत करता है; अतः यह बुद्ध के अन्तिम काल से सम्बन्धित घटना है।
महापरिनिव्वाण सुत्त में अधिकांश घटनाएं बुद्ध के अन्तिम जीवन से सम्बन्धित हैं, यह समझ में आता है; पर सभी घटनाएं ऐसी ही हैं, यह यथार्थ नहीं लगता। महापरिनिवाण
१. विस्तार के लिए देखें, प्रस्तुत प्रकरण में 'बुद्ध-निर्वाण-कालः परम्परागत तिथियां'। २. दर्शन और चिन्तन, द्वितीय खण्ड, पृ० ४७, ४८ ।
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