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________________ इतिहास और परम्परा ] काल-निर्णय ५३ और कोणिक के राज्यारोहण के बीच कम-से-कम १७ वर्ष का अन्तर पड़ता है । किन्तु कोबी द्वारा अभिमत तिथियों के अनुसार तो वह अन्तर २५ वर्ष से अधिक हो ही नहीं सकता । दूसरी असंगति यह है— श्रेणिक भगवान् महावीर से प्रश्न पूछता है : "भगवन् ! अन्तिम केवली कौन होगा ? भगवान् उत्तर देते हैं- “आज से सातवें दिन ऋषभदत्त भार्या के उदर में विद्युन्माली देव आयेगा और वह आगे चल कर जम्बू नामक अन्तिम केवली होगा ।"" जम्बूस्वामी की सर्व आयु ८० वर्ष की थी । ३ १६ वर्ष वे गृहस्थावास में रहे । महावीर निर्वाण के अनन्तर सुधर्मा स्वामी के हाथों उनकी दीक्षा होती है । * इससे राजा श्रेणिक का राज्यान्त और भगवान् महावीर के निर्वाण में लगभग सतरह वर्ष का अन्तर आता है । डा० कोबी द्वारा श्रेणिक - राज्यान्त (कोणिक का राज्यारोहण) और महावीर के निर्वाण में १५ वर्ष से अधिक अन्तर नहीं आ पाता । इस प्रकार इन तिथियों को मान लेने में अनेक आपत्तियां हैं । भगवान् महावीर का निर्वाण ई० पू० ५२७ में हुआ, यह मान्यता लगभग निर्विकल्प और निर्विरोध थी । बुद्ध-निर्वाण का इतना असंदिग्ध काल कोई भी नही माना गया था । १. डा० जेकोबी ने कोणिक के राज्यारोहण के ८वें वर्ष में बुद्ध का निर्वाण माना है (श्रमण, वर्ष १३, अंक ७, पृ० २६) तथा महावीर का निर्वाण बुद्ध से ७ वर्ष बाद माना है । २. पुनर्विज्ञपयामास जिनेन्द्र मगधाधिपः । भगवन्केवलज्ञानं कस्मिन्व्युच्छेदमेष्यति ॥२६२॥ नाथोऽप्पकथयत्पश्य विद्युन्माली सुरोह्यसौ । सामानिको ब्रह्मन्द्रस्य चतुर्देवी समावृतः ॥२६३॥ अह्वोऽमुष्मात्सप्तमेऽह्नि च्युत्वाभावी पुरे तव । श्रेष्ठि ऋषभदत्तस्य जम्बुः पुत्रोऽन्त्यकेवली ॥ २६४॥ परिशिष्ट पर्व, सर्ग १ ३. वे १६ वर्ष गृहस्थावास में, २० वर्ष छद्यस्थ-साधु-अवस्था तथा ४४ वर्ष केवली - अवस्था में रहे । उनका निर्वाण भगवान् महावीर के ६४ वर्ष बाद हुआ था; अतः उनकी दीक्षा महावीर - निर्वाण के बाद उसी वर्ष में हुई, जिस वर्ष भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ । ४. सुधर्म स्वामिनः पादानापादम्भोषितारकान् । पञ्चाङ्गस्पृष्ट भूपीठः स प्रणम्य व्यजिज्ञपत् ॥ २८७ ॥ संसारसागरतरी प्रव्रज्यां परमेश्वर । मम सस्वजनस्यापि देहि धेहि कृपां मयि ॥ २८८ ॥ पञ्चमः श्रीगणधरो ऽप्येवमभ्यथितस्तदा । तस्मै सपरिवाराय ददौ दीक्षां यथाविधि ॥ २८६ ॥ परिशिष्ट पर्व, सर्ग ३ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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