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________________ ५२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ अन्य उल्लेख यह है कि बुद्ध का निर्वाण ई० पू० ५४३ में हुआ, जिसे डा० जेकोबी ने भी अपने लेख में बुद्ध-निर्वाण का प्रसिद्ध परम्परा-मान्य समय कहा है। अब यदि महावंश में बुद्ध निर्वाण का समय ५४३ ई० पू० मानकर उसके १६२ वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण माना है, तो चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण का समय ई० पू० ३८१ का आता है। पर इसकी चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण की जो सर्वसम्मत ऐतिहासिक तिथि (ई०पू० ३२२) है, उसके साथ कोई संगति नहीं बैठती । अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि महावंश के इस संदिग्ध प्रमाण को मानकर डा० जेकोबी ने बुद्ध-निर्वाण का जो समय माना है, वह संगत नहीं है।' असंगतियां डा० जेकोबी द्वारा निर्णीत भगवान महावीर और बुद्ध की निर्वाण-तिथियों को मानकर चलने में कुछ अन्य असंगतियां भी पैदा होती हैं। भगवती में गोशालक ने अपनी अन्तिम अवस्था में आठ चरमों का निरूपण किया है, उनमें एक चरम महाशिलाकंटक युद्ध भी है। इससे विदित होता है कि गोशालक का निधन महाशिलाकंटक युद्ध के बाद हुआ । गोशालक की मृत्यु के ७ दिन पूर्व भगवान् महावीर कहते हैं ; “मैं अब से १६ वर्ष तक गन्धहस्ती की तरह निर्बाध रूप से जीऊंगा।"५ तात्पर्य यह होता है कि कोणिक के राज्यारोहण के तुरन्त बाद ही यदि महाशिलाकंटक युद्ध हुआ हो, तो भी भगवान् महावीर १. The event happenned in 514 B. C. according to a Ceylonese Reckoning. -H. C. Raychoudhuri, political Hisory of Ancient India p. 225. सिलोनी गाथा महावंश के अनुसार गौतमबुद्ध का निर्वाण ई० पू० ५४४ में हुआ। -प्रो० श्री नेत्र पाण्डेय, भारत का बृहत् इतिहास, प्रथम भाग, प्राचीन भारत, चतुर्थ संस्करण, पृ० २४३ । २. श्रमण, वर्ष १२, अंक ६, पृ० १०। ३. सामान्य रूप से भी महावंश की राज्यत्व-काल-गणना ऐतिहासिक कसौटी पर भूल भरी प्रमाणित होती है, जिसकी विशेष चर्चा प्रस्तुत प्रकरण के 'काल-गणना' शीर्षक के अन्तर्गत की गई है। ४. तस्सविण मज्जस्स पच्छाणट्ठाए इमाइं अट्ठ चरमाइं पण्णवेइ, तंजहा चरिमे पाणे, चरिमे गेये, चरिमे णट्टे, चरिमे अंजलिकम्मे, चरिमे पोक्खलस्स संवट्टए महामेहे, चरिमे सेयणए गंधहत्थि, चरिमे रहासिलाकंटए संगामे। -भगवती, शतक १५ । ५. तएणं समणे भगवं महावीरे गोसालं मंखलीपुत्तं एवं वयासी “णो खलु अहं । गोसाला तव तवेण तेएणं अणाइट्ठे समाणे अंतो छण्हं मासाणं जावकालं करिष्सामि । अहण अण्णाई सोलसवासाइं जिणे सुहत्थी विहरिस्सामि ।" -भगवती, शतक १५ । ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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