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इतिहास और परम्परा]
पश्चात् हुआ और चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण का सर्वसम्मत समय ई० पू० ३२२ है; अतः बुद्ध निर्वाण ई० पू० ४८४ ठहरता है।"
डा० जेकोबी ने दक्षिण के बौद्धों की परम्परा का उल्लेख कर चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण का जो तथ्य पकड़ा है, वह महावंश का है। उसी महावंश में एक ओर जहां यह कहा गया है कि चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण बुद्ध-निर्वाण के १६२ वर्ष बाद हुआ, वहां उसी ग्रन्थ का एक
१. अजातसत्तुपुत्तो तं, धातेत्वादाय भद्दको ।
रज्जं सोलसवस्सानि, कारेसि मित्त दुब्भिको ॥१॥ उदयभद्दपुत्तो तं, घातेत्वा अनुरुद्धको । अनुरुद्धस्स पुत्तो तं, घातेत्वा मुण्डनामको ।।२।। मित्तदुनो दुम्मतिनो, ते पि रज्जं अकारयु । तेसं उभिन्नं रज्जेसु, अट्ठवस्सानतिक्कमु ॥३।। मुण्ड स्स पुत्तो पितरं, घातेत्वा नागदासको। चतुवीसति वस्सानि, रज्जं कारेसि पापको॥४॥ पितु घातकवंसोयं, इति कुद्धाथ नागरा। नागदासकराजानं अपनेत्वा समागता ॥१॥ सुसुनागोति पञातं, अमच्चं साधु संमतं । रज्जे समभिसिविमं सब्बेसि हितमानसा ।।६।। सो अट्ठारस वस्सानि, राजा रजजं अकारयि । कालासोको तस्स पुत्तो, अट्ठवीसति कारयि ।।७।। अतीते दसमे वस्से, कालसोकस्स राजिनो। संबुद्ध परिनिव्वाणा, एवं वस्ससतं अहु ॥८॥
-महावंश, परिच्छेद ४। कालासोकस्स पुत्ता तु, अहेसुं दस भातुका। द्वावीसति ते वस्सानि, रज्जं समनुसासितूं ॥१४॥ नव नंदाततो आसु, केमेनेव नराधिपा। ते पि द्वावीसवर सानि, रज्जं समनुसासिसु ॥१५॥ मोरिणियाणं खत्तियाणं वंसे जातं सिरीधरं । चंदगुत्तोति पञ्जातं, चाणक्को ब्राह्मणो तत्तो॥१६।। नवमं धननंदं तं, घातेत्वा चंड कोधवा । सकले जंबुदीपंस्मि, रज्जे सर्मामसिञ्चसो॥१७॥
-महावंश, परिच्छेद ५।
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