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प्रथम-परिच्छेद ]
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औषधादि वस्तु को आवश्यकता प्रतीत हुई तब मध्याह्न का लाया हुआ खाद्य पेय पदार्थ रखने के लिए शिक्यक (सिक्का) रखने लगे। ६ तुंबे के मुंह पर लगाने का दोरा रखने मादि की गीतार्थ पूर्वाचार्यों ने प्राचरणा की।
शिवभूति गुरु को छोड़ कर जाने के बाद कुछ समय उत्तर-भारत में विचर कर दक्षिण की तरफ विचरे, क्योंकि दक्षिण में पहले से ही "ग्राजीविक" सम्प्रदाय के भिक्षु विचर रहे थे। वहां के लोग नग्नता का प्रादर करते थे। शिवभूति के दक्षिण में जाने के बाद कौन-कौन शिष्य हुए, इसका कहीं भी श्वेताम्बर या दिगम्बर जैन साहित्य में उल्लेख नहीं मिलता। श्वेताम्बर साहित्य में सर्वप्रथम आवश्यक मूल-भाष्य में प्रार्य शिवभूति तथा इसके उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन दिया है, जो कि शिवभूत के नग्नता धारण करने के बाद श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भाष्य प्रादि अनेक शिष्ट ग्रन्थ बने हैं, परन्तु किसी ने भी इस विषय में कुछ नहीं लिखा, क्योंकि एक तो शिवभूति ने किसी मूल सिद्धान्त के विरुद्ध कोई प्ररूपणा नहीं की थी, दूसरा इनके दक्षिणापथ में दूर चले जाने के कारण स्थविरकल्पियों को शिवभूति तथा उनके अनुयायियों के साथ संघर्ष होने का प्रसंग ही नहीं था। शिवभूति ने दक्षिणापथ में कहां-कहां विहार किया, कितने शिष्य किये इत्यादि बातों का प्राचीन जैन साहित्य से पता नहीं चलता। शिवभूति के परम्परा शिष्य कोण्डकुन्द अपने परम्परागुरु शिवभूति से कितने समय के बाद हुए, इसके सम्बन्ध में ऊहापोह किये विता दिगम्बर सम्प्रदाय की पट्टावलियां देना अशक्य है।
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