SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ । [ पट्टावली-पराग - किये गये और १ रजोहरण, २ मुखव स्त्रका, ३-४-५ कल्पत्रिक (२ सूती वस्त्र, १ ऊर्णामय), ६ चोलपट्टक, ७ मात्रक (छोटा पात्र विशेष) ये सात प्रकार के उपकरण व्यवहार में लेने के लिए रक्खे गए। इनके अतिरिक्त 'दण्ड" और "उत्तरपट्टकादि' कतिपय "ग्रौपग्रहिक' उपकरणों के रखने को आज्ञा दी। उपर्युक्त उपधि का परिमारण विक्रम की द्वितीय शती तक निश्चित हो चुका था। "दण्डाऊछन अादि "प्रौपग्रहिक' उपकरण उसके बाद में भी श्रमणों की उपधि में प्रविष्ट हुए हैं। इस नयी व्यवस्था से प्राचीन व्यवस्था में बहुत कुछ परिवर्तन भी हुआ जो निम्नलिखित गाथा से ज्ञात होगा: "कप्पारणं पावरणं, भग्गीयरञ्चायो झोलियाभिकहा। प्रोवग्गहिकडाय - तुंबर मुंहदागदोराई ॥" अर्थ : १ "कल्प” अर्थात् वस्त्रत्रय जो पहले शीत ऋतु में प्रोढा जाता और शेषकाल में पड़ा रहता था उसका मालिक श्रमण कहीं बाहर जाता तब अन्य किसी साधु को संभलाकर जाता अथवा तो अपने कन्धे पर रखकर जाता, परन्तु प्रोढ़ता नहीं था। जब से नये उपकरणों की व्यवस्था प्रचार में आयी तब से वस्त्रों का प्रोढना भी शुरु हुआ। २ 'अग्रावतार वस्त्र' जो सदाकाल लज्जा-निवारणार्थ कमर पर लटका करता था, उसका चोलपट्टक के स्वीकार करने के बाद त्याग कर दिया गया। ३ पहले साधु भिक्षा-पात्र हाथ में रखकर उस पर पटलक ढांकते थे और पटलक का दूसरा अांचल दाहिने कन्धे के पिछलो तरफ लटकता रहता था। जब से भिक्षा-पात्र झोली में रखकर भिक्षा लाने का प्रचार हुआ, तब से षटलक बाम हस्त में भराई हुई झोली के ऊपर ढांकने का चालू हुआ और पडले का एक छोर कन्धे पर रखना बन्द हुमा। ४ दण्डाऊँछण (दण्डासन) प्रादि प्रौपग्रहिक उपकरणों का उपयोग किया जाने लगा। ५ पहले साधु दिन में एक बार हो भोजन करते थे, परन्तु जब श्रमणसंख्या बढ़ी और उसमें बाल, वृद्ध, ग्लान आदि के लिए दूसरो बार खाद्य, पेय, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy