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श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता
अब हम देखेंगे कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता को सिद्ध करने वाले कुछ प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं या नहीं ?
बौद्धों के प्राचीन पाली ग्रन्थों में अाजीविक मत के नेता गोशालक के कुछ सिद्धान्तों का वर्णन मिलता है, जिसमें मनुष्यों की कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र, शुक्ल और परमशुक्ल ये छः अभिजातियां बताई हैं। इनमें से दूसरी नीलाभिजाति में बौद्ध भिक्षुषों और तीसरी लोहिताभिजाति में निर्ग्रन्थों का समावेश किया है। उस स्थल में निर्ग्रन्थों के लिए प्रयुक्त बौद्ध सूत्र के शब्द इस प्रकार के हैं :
"लौहिताभिजाति नाम निग्गन्था एकसाटकातिवदति" अ०) अर्थात् "एक चिथड़े वाले निर्ग्रन्थों को गोशालक "लोहिताभिजाति" कहता है।" (अ० नि० भा० ३ पृ० ३८३)
इस प्रकार गोशालक ने निर्ग्रन्थों के लिए जहां "एक चिथड़े वाले" यह विशेषण प्रयुक्त किया है और इसी प्रकार दूसरे स्थलों में भी अतिप्राचीन बौद्ध लेखकों ने जैन निर्ग्रन्थों के लिए "एकशाटक" विशेषण लिखा है। इससे सिद्ध होता है कि बुद्ध के समय में भी महावीर के साधु एक वस्त्र प्रवश्य रखते थे, तभी अन्य दार्शनिकों ने उनको उक्त विशेषण दिया है।
__"एकशाटक" विशेषण उदासीन जैन श्रावकों के लिए प्रयुक्त होने को सम्भावना करना भी बेकार है, क्योंकि बौद्ध त्रिपिटकों में "निग्गन्थ" शब्द केवल जैन साधुओं के लिए प्रयुक्त हुअा है, श्रावकों के लिए नहीं।
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