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[ पट्टावली-पराग
गये थे, पर जमालि मन्त तक अपने मत को पकड़े रहा था और महावीर के श्रमणों की दृष्टि में वह बिलकुल गिर गया था।
महावीर के केलिजीवन के ३० वर्षों में गोशालक के साथ जो खटपट हुई थी, उसका परिणाम महावीर को भोगना पड़ा था। फिर भी उस प्रकरण की समाप्ति छः महीनों के प्रति में हो गई थी, पर जमालि के विरोध की समाप्ति जमालि की जीवित अवस्था में नहीं हुई थी।
उक्त तीन प्रसंगों के अतिरिक्त महावीर की जिनावस्था में कोई भी अनिष्ट प्रसंग नहीं बना था।
(३) अव्यक्तवादी आषाढाचार्य शिष्य
भगवान् महावीर को निर्वाण प्राप्त हुए दो सौ चौदह वर्ष बीतने पर भाषाढाचार्य के शिष्यों ने श्वेतविका नगरी में महावीर के शासन में अव्यक्तवादी दर्शन की उत्पत्ति की । इस घटना का विवरण इस प्रकार है :
श्वेतविका नगरी के पोलासोद्यान में प्रार्य प्राषाढ नामक प्राचार्य माए हुए थे। वहां पर उनके अनेक शिष्यों ने आगाढ योग में प्रवेश किया था। आषाढाचार्य ही उन योगवाहियों के वाचनाचार्य थे, एक रात्रि में हृदयशूल से प्राषाढाचार्य मरकर सौधर्म देवलोक में "नलिनीगुल्म" नामक विमान में देव हुए । उत्पन्न होते ही अवधिज्ञान से उपयोग लगाया तो अपने पूर्वभविक शरीर को देखा, मागाढ़ योगवाही साधुनों को तब तक पता नहीं है कि प्राचार्य काल कर गए हैं। तब प्राचार्य के जीव देव ने "नलिनिगुल्म" से पाकर पपने उस शरीर में प्रवेश कर योगवाही साधुओं को उठाया और वैरात्रिक काल लिवाया। इस प्रकार देव ने अपने दिव्य प्रभाव से निर्विघ्नतापूर्वक योगवाही साधुओं का कार्य पूरा करवाया। बाद में उसने कहा : "खमिएगा भगवन्त ! आज तक मैंने असंयत होते हुए भी मापसे वन्दन करवाया। मैं अमुक दिन की रात्रि में कालधर्म प्राप्त हुआ था और तुम्हारे ऊपर दया लाकर पाया था। इस प्रकार वह अपनी सर्व हकीकत व्यक्त करके साधुओं से क्षमा मांग कर चला गया। साधु भी
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