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________________ निडवों का निरूपा भगवान् महावीर के समय में जैन-संघ अविभक्त था। पर माज जैन-धर्म का अनुयायी वर्ग दो विभागों में बंटा हुआ है ! १. श्वेताम्बर सम्प्रदाय में और २. दिगम्बर सम्प्रदाय में। महावीर के केवलज्ञान प्राप्त कर अपना तीर्थ स्थापित करने के पूर्व जैन धर्म का अनुयायी वर्ग साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का अनुयायी था। _ विक्रम संवत् के पूर्व ५०० (ई० ५५७) में जब भगवान् महावीर ने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया और वैशाख शुक्ला ११ को पावामध्यमा के महासेन उद्यान में चतुर्विध संघ की स्थापना की, तब से जैन-संघ पर भगवान् महावीर का धर्मशासन प्रारम्भ हुआ था। पार्श्वनाथ के कतिपय श्रमणगण जो तत्काल महावीर के शासन के नीचे नहीं पाये थे, वे धीरेधीरे संशय दूर करके महावीर के उपदेशानुसार चलने लगे थे और भगवान् महावीर का धर्मशासन व्यवस्थित रूप से चलता था। . भगवान महावीर के जीवनकाल में दो साधु ऐसे मिकले जिन्होंने भगवान् के वचन में संदेह किया और अपना नया मत प्रचलित किया। इन दो में पहले का नाम "जमालि और दूसरे का नाम "तिष्यगुप्त" था। इन दो के अतिरिक्त ५ व्यक्तियों ने महावीर के निर्वाण के बाद भिन्न-भिन्न विषयों में महावीर के कथन से अपना मतभेद व्यक्त किया था। वे सात ही मतवादी “निह्नव" कहे गये हैं, इनका कालक्रम से विशेष विवरण नीचे दिया जाता है: ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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