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________________ प्रथम-परिच्छेद ] [ ५३ ____ "प्रचलित पट्टावली की गाथाओं में प्रार्य मंगू के वर्ष २० और आर्य धर्म के २४ लिखे हुए हैं। कहीं-कहीं आर्य धर्म का युगप्रधानत्व समय ४४ वर्ष का भी लिखा है। मार्य धर्म के ४४ वर्ष मानने वाले मार्य मंगू को उड़ाकर २० वर्ष कम कर देते हैं, परन्तु हमने प्रार्य मंगू को भी कायम रक्खा है, और आर्य धर्म के भी ४४ वर्ष माने हैं । “गुणसुन्दर" तथा "स्कन्दि ” को कम करने के बाद इस मान्यता के अनुसार ऐतिहासिक संगति ठीक मिल जाती है।" वालभी याचना के अनुयायियों तथा लेखकों ने भी प्राचार्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण को २७वां पुरुष माना है। हमारी संशोधित वालभी पट्टावली में कालकाचार्य का नाम २७वां आता है और नन्दी-स्थविरावली की माथुरी गणना के अनुसार भी देवद्धि क्षमाश्रमण का नाम २७वां ही प्राता है। देवद्धिगणि युगप्रधान के रूप में २७वें हैं, परन्तु गुरु-शिष्य क्रम के अनुसार ३४वें पुरुष हैं। नन्दीसूत्रकार द्वारा अंगीकृत २७ स्थविरों के नामों में से वालभी वाचनानुयायिनी स्थविरावली में ६ नाम भिन्न प्रकार के हैं। मार्य सुहस्ती तक के ११ नामों में कोई फरक नहीं है, परन्तु इसके बाद के वालभी के नामों में १५ से २१ तक के स्थविर धर्म, भद्रगुप्त, श्रीगुप्त, वज्र, रक्षित, पुष्यमित्र और वज्रसेन के नाम वालभी में जुदे पड़ते हैं। ये सात नाम वास्तव में युगप्रधान-स्तोत्र में से वालभी स्थविरावली में जोड़ दिये हैं। अन्तिम नाम कालकाचार्य का भी माथुरी से जुदा पड़ता है। वालभी में १२वां नाम रेवतिमित्र का है, जब कि माथुरी में "स्वाति" का। इस प्रकार माथुरी के २७ नामों में से वालभी के ६ नाम जुदे पड़ते हैं, इसका कारण तत्कालीन जैन श्रमणसंघ के दो विभाग हैं, प्रथम दुष्काल के समय श्रमणों की छोटी-छोटी टुकड़ियां समुद्रतट तथा नदी मातृक देशों में पहुंची थी और दुष्काल के अन्त में फिर सम्मिलित हो गई थीं, परन्तु सम्प्रति मौर्य के समय में सुदूर दक्षिण में पहुंचे हुए श्रमण तथा प्रार्य वज के समय के दुर्भिक्ष में दक्षिण, मध्यभारत तथा पश्चिम भारत में पहुंचे हुए श्रमण उत्तर-भारतीय श्रमणगणों से बहुत दूर विचर रहे थे, इस कारण Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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