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________________ ५४ ] [ पट्टावली-पराग से तत्कालीन जैन - श्रमणों में चलतो हुई "संघ स्थविर शासन पद्धति" के अनुसार उत्तरीय श्रमणगणों के "संघस्थविर' के स्थान में अपना नया संघस्थविर नियुक्त करके संघ स्थविर-पद्धति को निभाते थे । प्रार्य धर्म से लेकर आर्य वज्रसेन तक के ७ ही स्थविर बहुधा भारत के मध्य तथा दक्षिण प्रदेश में विन्ध्याचल के आसपास विचरने वाले थे, इसलिए उधर के श्रमणगरणों ने इन स्थविर प्राचार्यों को अपनी वाचक परम्परा में मान लिया था । स्थविर वज्रसेन के बाद दाक्षिणात्य श्रमरणसंघ पश्चिमोत्तर की तरफ मुड़कर जब विदर्भ में होता हुआ सौराष्ट्र की तरफ पहुँचा तब उत्तरीय श्रमणसघ भी पश्चिम की तरफ विचरता हुआ मथुरा के आसपान के प्रदेशों में पहुँच चुका था, फलस्वरूप फिर दोनों संघों का एक दूसरे से सम्पर्क हुआ और स्थविर शासन पद्धति फिर एक हो गई। आर्य वज्रसेन के बाद के उत्तरीय संघ के मार्य नागहस्ती, आर्य रेवतिनक्षत्र, ब्रह्मदीपिकसिंहसूर, नागार्जुन वाचक और भूतदिन इन पांच संघस्थविरों को अपनी स्वरावली में स्थान देकर श्रमरणसंघ का अखण्डत्त्व कायम किया । इस प्रकार दाक्षिणात्य श्रमरणसंघ ने १७० वर्ष तक अपनी संघस्थविर शासन पद्धति को स्वतन्त्र रूप से निभा कर विक्रम को दूसरी शताब्दी के मध्य में फिर वे उत्तराय संघ में सम्मिलित हुए और ३६० से अधिक वर्षों तक सघ स्थविर-पद्धति अखण्डित रही । इस समय के दर्मियान दुभिक्षादि विषमकाल के वश जैन श्रमणों का श्रागमाध्ययन अव्यवस्थित बन गया था, अत: उत्तरीय संघ के नेता भार्य स्कन्दिल और दाक्षिणात्य संघ के नायक नागार्जुन वाचक ने क्रमशः मथुरा तथा वलभी में अपने श्रमणगरणों को इकट्ठा कर नागमों को व्यवस्थित करके ताडपत्रों पर लिखवाया। कालान्तर में उत्तरीय तथा दाक्षिणात्य संघ फिर वलभी में सम्मिलित हुए और दोनों वाचनाओं के अनुगत श्रागमों का समन्वय किया, इस समन्वयकारक सम्मेलन में माधुरी वाचनानुयायी श्रमणसंघ के प्रमुख स्थविर 'देवरि वाचक' थे, तब वालभी वाचनानुयायी श्रमणसंघ के नेता श्रार्य "कालक", यह समय वीरनिर्वाण से दशम शतक का अन्तिम चरण था । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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