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[ पट्टावली-पराम
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चूणि आदि में लेख है। इससे भी ज्ञात होता है कि स्थूलभद्र के स्वर्गवास के समय में आर्य सुहस्ती कम से कम १०-११ वर्ष के पर्यायवान् गीतार्थ होंगे। इन सब बातों के पर्यालोचन से यही सिद्ध होता है कि स्थूलभद्र का स्वर्गवास का समय माने हुए समय से बहुत पीछे का है ।
संप्रति के जीव द्रमक को 'कोशम्बाहार' में प्रार्य सुहस्ती नै दीक्षा दी; उस समय आर्य महागिरिजी जीवित थे मौर उस समय में मगध की राजगद्दी पर मौर्य अशोक था, क्योंकि दमक साधु उसी रात को मर कर राजकुमार कुणाल की रानी की कोख में पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ माना गया है।
प्रचलित पट्टावलियों में प्रार्य महागिरि का स्वर्गवास निर्वाण से २४५ में माना गया है। यदि यह समय ठोक होता तो दमक के दीक्षाप्रसंग पर उनकी विद्यमानता के उल्लेख नहीं मिलते, क्योंकि २४५ में चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार का पाटलिपुत्र में राज्य था, अशोक का नहीं । शास्त्र में अशोक के राज्यकाल में द्रमक को दीक्षा देने का लिखा है।
उपर्युक्त असंगतियां तो उदाहरण के रूप में लिखो हैं। इस प्रकार को और इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण असंगतियां प्रचलित माथुरी तथा वालभी पट्टावलियों में दृष्टिगोचर होती है, जो आर्य संभूतविजयजी के ६० वर्षों के स्थान पर ८ वर्ष मान लेने का परिणाम है। इसलिए हमने प्राचीन गाथा में “सम्भूयसद्धि" इस प्रकार का पाठ स्वीकार कर उक्त प्रकार की असंगतियों को दूर किया है।
हमने गाथानों में से प्रार्य सुहख्ती के बाद के स्थविर "गुणसुन्दर" और निगोदव्याख्याता श्यामार्य के बाद के "स्कन्दिल" के नाम कम किये हैं, क्योंकि ये दोनों नाम "प्राचीन वालभी वाचना" की थेरावली में नहीं हैं। प्राचार्य मेरुतुंग कहते हैं, "मूल स्थविरावली में न होते हुए भी सम्प्रदाय से ये दोनों नाम लिए गए हैं" । वालभी स्थविरावली में मार्य समुद्र का नाम हमने दाखिल किया है, क्योंकि सूत्रों की चूणियों में प्रार्य समुद्र तथा आर्य मंगू के नाम युगप्रधान के रूप में लिखे मिलते हैं।
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