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________________ ५०४ ] [ पट्टावली-पराग सं० १६४३ में दोसी ममजी ने प्रतिष्ठा की, शाह जीवराज ने प्रतिमा प्रतिष्ठा की, बाद में खरतर शाह सोमजी शवा ने संघ निकाला, उन्होंने बहुत प्राग्रह करके शाहश्री को संघ के साथ लिया, शाहश्री अपने संघ के साथ खंभात के सोनी परखा प्रमुख राजनगर के भी अनेक मनुष्यों के साथ सब संवरियों को लेकर सिद्धाचल की यात्रा के लिए गए, वहां अनेक उत्सव हुए, पूजा, स्नानादि हुए, साह रतनपाल ने वहां पर अवन्ति सुकुमाल का नया रास बनाया और गाकर सुनाया, यात्रा करके सकुशल राजनगर आए। सं० १६४४ में शाहश्री के शरीर में रोग उत्पन्न हुआ, समस्त संघ मिला और शाहश्री ने अपना प्रायुष्य निकट जानकर शाह तेजपाल को अपने पद पर स्थापन किया, संवरियों को अनेक प्रकार से शिक्षा दी, तोन दिन तक अनशन पालकर अरिहन्त सिद्ध जपते हुए जीवराजशाह दिवंगत हुए। शाह जीवराज १२ वर्ष गृहस्थ रूप में, ११ वर्ष सामान्य संवरो के रूप में और ४३ वर्ष पट्टधर के रूप में रहकर ६६ वर्ष का आयुष्य पूर्णकर स्वर्गवासी हुए। सामियों ने बड़े ठाट के साथ देहसंस्कार किया, सारे नगर में दो दिन तक अमारि रही । ५. जीवराज के पट्टधर शाह तेजपाल का चरित्र : पाटन के निवासी श्रीश्रीमालो दोसो रायचन्द की भार्या कनकादे की कोख से शा० तेजपाल का जन्म हुआ। शा० तेजपाल जीवराज के वचन से संवरी हुए थे। १३ वर्ष गृहस्थ रूप में, २१ वर्ष सामान्य संबरी के रूप में और दो वर्ष पट्टोधर रहे। शाह तेजपाल बड़े विद्वान् थे। आपने ' महावीरं नमस्कृत्य" तथा "कल्याणकारणो धर्मः' इत्यादि 'सावचूरिक स्तोत्र' बनाए थे। शाह राजमल तथा चोथा को पढ़ाया और चोथा को थराद का आदेश दिया। दूसरे संवरियों को भी विद्या पढ़ा कर तैयार किया। आपको उदर-व्याधि की पीड़ा रहा करती थी। ___Jain Education International 2010_05 For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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