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चतुर्थ-परिच्छेव ]
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सं० १६४५ में शाह श्रीवंत ने भी अपने स्तोत्र बनाए और शाह श्रीवंत सं० १६४६ में दिवंगत हुए।
___ शाह श्री तेजपाल ने पाटन में चातुर्मासक किया, वहां शरीर में विशेष प्रकार की बाधा उत्पन्न हुई। शाह रत्नपाल को पद पर स्थापन करके ३६ वर्ष का प्रायुष्य पूर्ण कर स्वर्गवासी हुए।
६. तेजपाल के पट्टधर शाह श्री रत्नपाल का चरित्र :
शाह रत्नपाल खम्भात के समीपवर्ती कंसारी गांव के रहने वाले श्रीश्रीमाली वृद्धशाखीय दोसीवस्ता की भार्या रीढ़ी की कोख से जन्मे थे। शाह श्री जीवराज के वचन से आप संवरी बने थे, सूक्ष्म विचार में भाप बहुत प्रवीण थे। आपने बहुत ही स्वतन-स्तुतियां रची हैं, चौबीस तीर्थङ्कर की, १३ काठिया की भास आदि प्रसिद्ध हैं।
सं० १६४७ में खम्भात में चातुर्मास्य कर वहां बाई सहजलदे ने शाही की वाणी सुनकर तिविहार अनशन किया, उस समय हरमज से शाह सोनी सोमसी पाए और उन्होंने बहुत उत्सव किया, अनशन की बड़ी शोभा हुई। शा० श्री रत्नपाल के उपदेश से बाई को प्रतिदिन निर्यामरणा होती, ५६ दिन अनशन पालकर वह दिवंगत हुई। श्रावकों ने मंडपी पूर्वक देह-संस्कार किया।
सं० १६४७ में शाह जैसा थराद में दिवंगत हुए। उसके पट्ट पर शाह खेतश्री बैठे।
सं० १६४८ में राजनगर में चतुर्मासक किया।
सं० १६४८ में शाह जिनदास की धर्मसागर के साथ चर्चा हुई। वहां धर्मसागर ने जिनदास को कहा - तुम अपने को धर्मार्थी कहते हो, इससे प्रमाणित होता हैं कि तुम अब तक धर्मी नहीं बने और जिन्दगी पर्यन्त धर्म प्राप्त नहीं होगा। शाह जिनदास ने कहा- हम श्री युगप्रधान
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