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चतुर्थ- परिच्छेद ]
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सज्जन ते चतुर्दशी का उत्तर वाररणा किया और पाक्षिक के दिन पौषध कर काल के देव वन्दन के बाद श्री चन्द्रप्रभ जिन की साख से जावज्जीवाए तिविहाहार का प्रत्याख्यान किया । दूसरे दिन पारणे के समय पारणा न करने से लोगों ने जाना आज भी उपवास होगा, बाद में शाह साजन ने स्वयं बात कही " मैंने तो अनशन किया है ।" दोसी मंगल, दोसी सोना, शाह धना प्रमुख संघ ने विनती को, कि शाहजी यह कार्य बड़ा दुष्कर है, वास्ते आठ, अथवा १५, अथवा तो मासखमरण करो पर अनशन न करो, इस पर शाह साजन ने कहा- मैंने यावज्जीव का प्रत्याख्यान कर लिया है, तब संघ ने राधनपुर शाह जीवराज को पत्र लिखकर जल्दी बुलाया, शाह जीवराज १७ वें उपवास के दिन प्राए, उत्सव बहुत हुए; ६१ दिस अनशन पालकर शाह साजन दिवंगत हुए, तब संघ ने मांडवी प्रमुख उत्सव करके अग्निसंस्कार किया और संघ ने असारउग्रा की धर्मसी पटेल की वाडो में स्तूप बनवाया, आज भी वह मौजूद है । तथा मेहता जयचन्द को जो मेहता के सन्तानीय थे उनको काबिलखान ने जेल में रक्खा था, उन्हें अहमदाबाद से दो० मंगल, प० रतना, दो० सोना, शाह धना ने पाटन जाकर तुरन्त मुक्त करवाया ।
परी० कीका को शाह नरपति ने पढ़ाया, शा० नरपति बड़े पण्डित थे, अनेक विद्याएँ पढ़े थे ।
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सं० १६३१ में शाह नरपति दिवंगत हुए ।
सं० १६३५ में शाह चोपसी दिवंगत हुए । सं० १६३६ में शाह तेजपाल ने थराद में राजमल को संवरी किया । सं० १६३८ में शाह गोवाल, शाह देवजी प्रमुख को प्रतिबोध किया ।
सं० १६४२ में पाटन से परी० कीका ने शाबु की यात्रा निकाली, साथ में शाह जीवराज प्रमुख संवरी थे, थराद से संघवी सीहा ने श्राबु का संघ निकाला, दोनों संघ इकट्ठे मिले, थराद से शाह जैसा प्रादि अनेक संवरी शाह जीवराज को मिले, श्राबु ऊपरशाह मांडन ने अनशन किया, उत्सव हुए, जिसकी हकीकत शाह मांडन के रास से जानना । शाह मांडन ५६ वें जिन दिवंगत हुए ।
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