________________
४६४ ]
[ पट्टावलो-पराग
२. शा० खीमा चरित्र :
पाटन राजकावाडा में पोरवाल ज्ञातीय शा० कर्मचन्द की भार्या कर्मादे की कोख से शा० खीमा का जन्म हुआ और १६वें वर्ष में वह शा० कडुप्रा के पास संवरी बने थे। २४ वर्ष सामान्य संवरी रहे, परी० पूना के घर शाह श्रीवंत बहुत पढ़े। परी० पूना ने प्रतिदिन एक कोडी ब्राह्मण को देकर उसके पास न्यायशास्त्र पढ़ा। थोड़े ही समय में विद्वान् बना।
शा० कडुआ के स्वर्गवास के बाद शाह खीमा के शरीर में बवासीर की बीमारी हुई, जिससे वे विहार भी नहीं कर सकते थे और संवरी के अभाव में श्रावक शिथिल होने लगे थे।
इसी समय दान संवत् १५६८ में थराद में पौषधशाला स्थापित हुई। कोई पौषधशाला में जाते, कोई संवरियों के स्थान पर, परन्तु सर्वत्र सामाचारी कडुमा की चलती। वर्तमान में भी इसी प्रकार चलता है।
शाह रामा के पट्टधर शाह राघव और दूसरे उपाश्रय में जाने वाले शाह दूदा के उत्तराधिकारी शाह ब्रह्मा हुए।
शाह खोमा १६ वर्ष तक गृहस्थ रूप में रहे, २४ वर्ष तक सामान्य संवरी के रूप में रहे भोर सात वर्ष शा० कडुपा के पट्टधर रह कर ४७ वर्ष की उम्र में शाह वीरा को अपने पद पर स्थापन कर सं० १५७१ में पाटन में देवंगत हुए। ३. शाह वीरा चरित्र :
नाडलाई गांव में श्रीश्रीमाली ज्ञातीय वृद्धशाला में दोसी कुमारपाल को भार्या कोडमदे की कोख से शाह वीरा का जन्म हुआ था। शाह वीरा श्री शा० कडुमा के पास संवरी बने थे। शाह श्री खीमा ने श्रीवन्त शाह को पढ़ा-लिखा और समझदार जानकर भण्डार को पोथियां उन्हे सोंपो थी, वे पोथियां इस समय लीम्बा महेता के घर पर हैं। जब शाह खीमा ने काल किया उस समय शाह वीरा सिरोही में थे।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org