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________________ प्रथम-परिच्छेद ] इन उपनामों से विख्यात हुए थे और इनसे निकलने वाला श्रमणगण भी "कोटिक" नाम से ही प्रसिद्ध हुआ। कोटिक गण की भी चार शाखाएँ और चार कूल थे। शाखामों के नाम : उच्चानागरी, विद्याधरी, वइरी और मध्यमिका थे। उच्चानागरी शाखा प्राचीन "उच्चानगरी" से प्रसिद्ध हई थी। उच्चानगरी को आजकल "बुलन्द शहर" कहते हैं, माध्यमिका शाखा "मध्यमिका नगरी" से प्रसिद्ध हुई थी जो चित्तौड़ के समीपवर्ती प्रदेश में थी। विद्याधरी और वइरी शाखाओं के नामों का प्रवृत्तिनिमित्त जानने में नहीं आया। यद्यपि विद्याधर गोपाल से विद्याधरी और आर्य वज्र से आर्य वजी शाखा निकलने का कारण स्थविरावली में आगे लिखा है, परन्तु वे 'शाखाएँ" स्वतन्त्र हैं, गच्छप्रतिबद्ध नहीं। तब प्रस्तुत 'विद्याधरी और 'वैरी' शाखा कोटिक गण से प्रतिबद्ध हैं। वेशवाटिक गण' की क्षोमिलीया और मानवगण की सौरदीया शाखामों से ज्ञात होता है, कामद्धि और ऋषिगुप्त प्राचार्यों के कुछ शिष्य बंगाल की तरफ विचरते थे, तब "कोटिक गण" को "उच्चानागरी" और "माध्यमिका" शाखाओं से निश्चित होता है कि "सुस्थित सुप्रतिबुद्ध" के शिष्य "मध्य-भारत" और "पश्चिम-भारत" के प्रदेशों तक पहुँच चुके थे। उपर्युक्त गण तथा शाखाओं से जो फलितार्थ निकलता है उसका सारांश यह है कि प्रार्य भद्रबाहु स्वामी, जिनका युगप्रधानत्व समय जिननिर्वाण से २०८ से २२२ तक माना गया है। भद्रबाहु के शिष्य गोदास स्थविर ने अपने नाम से जो गण प्रसिद्ध किया, उसका समय भी निर्वाण से २२२ से २३० का होना चाहिए, जो विक्रमपूर्व की तीसरी शताब्दी में पड़ता है। गोदास गण की तथा प्राचार्य महागिरि के शिष्य "उत्तर" तथा "बलिस्सह" से निकलने वाले “उत्तर-बलिस्सह गण" की शाखाएँ हैं, परन्तु कुल नहीं। इसका कारण यही है कि तब तक दीक्षित होने वाले सभी साधु पट्टधर प्राचार्य के ही शिष्य माने जाते थे। श्रमणसमुदाय अधिक होने से भिन्न २ स्थानों को अपना केन्द्र बना कर उसके आसपास धर्म का प्रचार करते थे। उन्हीं केन्द्रों के नाम से उनकी शाखाओं के नाम पडते थे। आर्य महागिरि का समय जिननिर्वाण से २६८-२६८ तक था। ___Jain Education International 2010_05 For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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