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[ पट्टावली-पराग
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स्थविर भद्रयशा नामक प्रार्य सुहस्ती के एक शिष्य से ऋतुवाटिक नामक एक गण प्रसिद्ध हुआ था, जिसकी चार शाखाएँ और तीन कुल थे। शाखाएं' : चम्पोया, भद्रीया, काकन्दीया और मैथिलीया नामक थीं जो क्रमशः अंग देश की राजधानी चम्पा, मलय देश की राजधानी भद्रिका, विदेह स्थित काकन्दी और विदेह की राजधानी मिथिला से प्रसिद्ध हुई थीं। इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि भद्रबाहु ही नहीं किन्तु उनके परवर्ती आर्य सुहस्ती के शिष्य भी अंग, मगध, विदेह आदि देशों में विचरते हुए जैन-धर्म का प्रचार कर रहे थे।
आर्य सुहस्ती के शिष्य काद्धि स्थविर से वैशवाटिक नामक गण प्रसिद्ध हुअा था, जिसकी चार शाखाएँ और चार कुल थे। शाखामों के नाम : श्रावस्तीया, राज्यपालिता, अन्तर जिया और क्षौमिलीया थे। आर्य काद्धि के वेशवाटिक गण की प्रथम तथा तृतीय शाखामों के नामों पर से ज्ञात होता है कि उनके शिष्य बस्ती तथा गोरखपुर जिलों में अधिक विचरे थे । वेशवाटिक गण को द्वितीय शाखा का पता नहीं लगा, परन्तु चौथी शाखा पूर्व बंगाल के "क्षौमिल नगर" से निकली थी जो स्थान प्राजकल "कोमिला' के नाम से प्रसिद्ध है।
आर्य सुहस्तो सूरिजी के शिष्य ऋषि गुप्त स्थविर से भी 'मानवगण' नामक एक गण निकला था, जिसकी शाखाएँ ४ और कुल ३ प्रसिद्ध थे। मानवगण की प्रथम द्वितीय और तृतीय शाखा काश्यप, गौतम और वासिष्ठ इन गोत्रों से प्रसिद्ध होमे वाले स्थविरों के नामों से प्रसिद्ध हुई थीं, तब चौथी शाखा 'सोरट्टिया' यह एक स्थान के नाम से प्रसिद्ध हुई जो सोरठ नगर' कहलाता था । यह स्थान मधुवनी से उत्तर-पश्चिम आठ मील पर "सौरठ" इस नाम से प्रख्यात है ।
स्थविर आर्य सुहस्ती के शिष्यों से निकलने वाले गणों में अन्तिम "कोटिक गण" है, इसकी उत्पत्ति सुस्थित सुप्रतिबुद्ध नामक दो स्थविरों से हुई थी। उक्त दोनों स्थविर गृहस्थाश्रम में क्रमशः 'कोटिवर्ष नगर' और 'काकन्दी नगरी' के रहने वाले होने से “कोटिक' तथा “काकन्दक"
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