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________________ प्रथम- परिच्छेद ] [ ३५ उसकी चार शाखाएँ प्रसिद्ध हुईं थीं जिनके नाम कौशाम्बीया ९, शुक्तिमतिका २, कोडम्बारणी ३ और चन्द्रनागरी ४ थे । इन शाखानों से ज्ञात होता है कि श्री भद्रबाहु स्वामी की दो पीढ़ी के बाद भी जैन श्रमणों का विहार मध्यभारत में कौशाम्बी तथा शुक्तिमती नगरी तक जो मध्यभारत के दक्षिण विभाग में विन्ध्याचल की घटियों की तराई में थो- पहुंच चुका था और पूर्व में कौडम्बारण नगर और उसके भागे चन्द्रनगर तक हो रहा था । यदि भद्रबाहु स्वामी १२००० श्रमणों के साथ दक्षिण में पहुँच गये होते तो भारत के मध्यप्रदेश में तथा पूर्व देशों में जैन श्रमणों की शाखाएँ कैसे प्रचलित होतीं, यह बात मध्यस्थबुद्धि से विद्वानों को विचारने योग्य है । आर्यसुहस्ती के शिष्य प्रर्यरोहण से "उद्दे हगरण" नामक श्रमणों का एक गण प्रसिद्ध हुआ था, जिसकी चार शाखाएँ और छः कुल थे । शाखानों के नाम : उदुम्बरीया, मासपुरीया, माहुरिज्जीया, पोणपत्तीया थे। इनमें उदुम्बरीया, प्राचीन श्रावस्ती के निकट प्रदेश से निकली थी, मासपुरीया वर्त देश की राजधानी मासपुर से निकली थी, माहुरिज्जीयामाथुरीया - मथुरा से प्रसिद्ध हुई थी, पौर्णपत्रीया शाखा का पता नहीं लगा, फिर भी "प्रारम्भ की तीन शाखाओं" से इतना तो निश्चित रूप से जाना जा सकता है कि भद्रबाहु और उनके परम्परा - शिष्यों के समय से ही निर्ग्रन्थ श्रमरणसंघ धीरे-धीरे पूर्व से मध्यभारत और उससे भी पश्चिम की तरफ आ रहा था । प्रार्य महागिरि तथा प्रार्य सुहस्ती के समय में अवन्ती नगरी में सम्प्रति का राज्य था, इसी कारण से उस समय में जैन श्रमरण मध्यभारत में अधिक फैले थे । आर्य सुहस्ती के शिष्य श्रीगुप्त स्थविर से चारण गण नामक एक श्रमणों का गण प्रसिद्धि में प्राया था, जिसकी चार शाखाएँ और तीन कुल थे । शाखाएँ : हारियमालाकारी, सांकाश्यिका, गवेधुका औौर वज्रनागरी नामों से प्रसिद्ध थीं । इन शाखाओं के नामों से ज्ञात होता है कि चारण गरण के श्रमरण भी कान्यकुब्ज के समीपवर्ती प्रदेशों में अधिक विचरते थे । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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