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[ पड़ावली-पराग
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प्रकार से लिखते हैं । पंजाब की पट्टावलियों में देवद्धिगणि-क्षमाश्रमण के बाद १८ नाम छोड़कर ज्ञानजी यति तक के जो नाम मिलते हैं, उनसे भी नहीं मिलने वाले प्राधुनिक स्थानकवासी पंजाबी साधु श्री फूलचन्दजी द्वारा सम्पादित "सुत्तागमे" नामक पुस्तक के दूसरे भाग के प्रारम्भ में दी गई पट्टावली में उपलब्ध होते हैं, जो १८ नाम अन्य पट्टावलियों में नहीं मिलते, वे भी इसमें लिखे मिलते हैं।
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