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[ पट्टावलो-पराग
इस समय पाटन में रहे हुए जेठमलजी ऋषि ने अहमदाबाद पत्र लिखा कि 'मूर्तिपूजकों की तरफ से वाद करने वाला विद्वान् कोन
आएगा ? मूर्तिपूजकों की तरफ से एक वीरविजयजी झगड़े में आये तो अपने पक्ष के सब ऋषि राजनगर आने के लिए तैयार हैं," इस प्रकार का जेठमलजी ऋषि का पत्र पढ़कर प्रेमाजी ऋषि ने गलत पत्र लिखा कि "वीरविजयजी यहां पर नहीं है और न आने वाले हैं" इस मतलब का पत्र पढ़कर जेठमलजी ऋषि लगभग एक गाड़ो के बोझ जितनी पुस्तकें लेकर अहमदाबाद पाए और एक गली में उतरे, वहां बैठे हुए अपने पक्षकारों से सलाह मशविरा करने लगे। लोम्बडी गांव के रहने वाले देवजी ऋषि महमदाबाद पाने वाले थे परन्तु विवाद के भय से बोमारी का बहाना कर खुद नहीं पाए और अपने शिष्य को भेजा। मूलजी ऋषि जो शरीर के मोटे ताजे थे और चलते वक्त हाँफते थे, इसलिए लोगों ने उनका नाम "पूज्यहाँफूस" ऐसा रख दिया था । इनके अतिरिक्त नरसिंह ऋषि जो स्थूलबुद्धि थे । वसराम ऋषि मादि सब मिलकर ८१ ढुण्डक साधु जो मुंह पर मुहपत्ति बांधे हुए थे, अहमदाबाद में एकत्रित हुए।
शहर में ये सर्वत्र भिक्षा के लिए फिरते थे। लोग आपस में कहते थे - ये दुण्ढिये एक मास भर का अन्न खा जायेंगे। तब दीनानाथ जोशी ने कहा - "फिकर न करो पाने वाला वर्ष ग्यारह महीने का है," जोशी के वचन से लोग निश्चिन्त हुए । श्रावक लोग उनके पास जाकर प्रश्न पूछते थे, परन्तु वे किसी को उत्तर न देकर नये-नये प्रश्न मागे धरते थे। तपागच्छ के पण्डितों के पास जो कोई प्रश्न पाते उन सब का वे उत्तर देते, यह देखकर ढुण्ढकमत वाले मन में जलते थे, इस प्रकार सब अपनी पार्टी के साथ एकत्रित हुए । इतने में सरकारी आदमी ने कहा - "साहब अदालत में बुलाते है," उस समय जो पण्डित नाम धराते थे, सभा में जाने के लिए तैयार हुए; मन्दिर मागियों के समुदाय में सब से भागे पं० वीरविजयजी चल रहे थे, उनकी मधुर वाणी और विद्वत्ता से परिचित लोग कह रहे थे - जयकमला वीरविजयजी को वरेगी। हितचिन्तक कहते थे - महाराज !
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