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चतुर्थ-परिच्छेद ]
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ने देखा कि यह चेप बढ़ रहा है, अब इसका प्रतीकार करना जरूरी है, यह सोचकर नानचन्द और उसके पुत्रों को न्यात से बहिष्कृत कर दिया, कोई उनको पानी तक नहीं पिलाता था। सगे सम्बन्धी भी अलग हो गये, फिर भो वे अपना दुराग्रह नहीं छोड़ते थे। उनके घरों में लड़कियां १२-१२ वर्ष की हो गई थीं, फिर भी उनसे कोई संबन्ध नहीं करता या और जो लड़की राजनगर में व्याही थी वह भी न्याती का विचार कर घर नहीं पाती थी इस पर नानचन्द ने अपनी न्यात पर १४ हजार रुपयो का राजनगर की राज्यकोर्ट में दावा किया ।"
उघर अमरचन्द के घर में उसकी मौरत के साथ रोज क्लेश होने लगा। औरत कहती - "तुमने न्यात के विरुद्ध झगड़ा उठाया, यह मूर्खता का काम किया । न्यात से लड़ना झगड़ना आसान बात नहीं। पहले यह नहीं सोचा कि इसका परिणाम क्या होगा, तुमने न्यात से सामना किया और लोगों के उपालम्भ मैं खाती हूं बड़ी उम्रकी बेटी को देखकर मेरी छाती जलती है," साह अमरा अपनी औरत की बातों से तंग भाकर शा० पूंजा टोकर से मिला और कहने लगा - न्यात बहिष्कृति वापस खींचकर हमें न्यात में कैसे लें, इसका कोई मार्ग बतायो । बेटी बड़ी हो गई हैं, उसको व्याहे बिना कैसे चलेगा, अमरा की बात सुनकर पूजाशाह ने अमरा को उल्टी सलाह दी, कहा - न्यात पर कोर्ट में अर्जी करो, इस पर अमरा ने अर्जी को और अपनी पुत्रो को खंभात के रहने वाले किसो ढुण्ढक को व्याह दी। पूजाशाह ने न्यात में कुछ “करियावर'' किया - तब उनके वेवाई जो ढुण्ढक थे, उसके वहां मर्यादा रक्खी तो भी ढुण्ढक लज्जित नहीं हुए, बहुत दिनों के बाद जब मर्जी की पेशी हुई तब शहर के धर्मप्रेमी सेठ भगवान् इच्छाचन्द मारणकचन्द और अन्य भी जो धर्म के अनुयायी थे सब अदालत में न्यायार्थ गए। अदालत ने अर्जी पर हुक्म दिया कि “मामला धर्म का है, इसलिए सभा होगी तब फैसला होगा, दोनों पक्षकार अपने-अपने गुरुत्रों को बुलाकर पुस्तक प्रमाणों के साथ सभा में हाजिर हों," अदालत का हुक्म होते ही गांव-गांव पत्रवाहक भेजे, फिर भी कोई ढुण्ढक पाया नहीं था ।
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