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प्रथम-परिच्छेद ]
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अनुयोगधारक, धीर, मतिसागर और महासत्त्ववन्त वत्सगोत्रीय स्थिरगुप्त क्षमाश्रमरण को प्रणिपात करता हूँ, फिर ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से सुस्थित गुरणों से महान् श्रोर गुणोपेत स्थविर कुमारधर्मं गरिए को वन्दन करता हूँ । सूत्र तथा अर्थ रूप रत्नों से भरे क्षमा, दम, मार्दवगुणों से सम्पन्न ऐसे काश्यपगोत्रीय देवद्धि क्षमाश्रमण को प्रणिपात करता हूँ ।
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