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प्रथम-परिच्छेद ]
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शिष्य आर्यवृद्ध गौतम गोत्रीय हुए, स्थविर आर्य वृद्ध के प्रार्य संघपालित गौतम गोत्रीय शिष्य हुए, स्थविर आर्यसंघपालित के प्रार्य हस्ती स्थविर शिष्य काश्यप गोत्रीय हुए, स्थविर आर्य हस्ती के अयं धर्मस्थविर शिष्य सुव्रत गोत्रीय हुए, स्थविर आर्यधर्म के प्रायसिंह स्थविर शिष्य काश्यप गोत्रीय हुए, स्थविर आयसिंह के आर्यधर्म काश्यप गोत्रीय रि.ष्य हुए, स्थविर आर्यधर्म के आर्य शाण्डिल्य स्थविर शिष्य हुए । १६ ।'
"वंदामि फगुमित्तं च, गोयमं धरणगिरि च वासिट्ट। कोच्छं सिवभूई पिय, कोसियदोज्जितकण्हे य ॥१॥ ते वंदिऊरण सिरसा, भदं वदामि कासवस गोत्तं । रणक्खं कासवगोत्तं, रक्खं पि य कासवं वंदे ॥२॥ वंदामि अज्जनागं च, गोयम जेहिलं च वासिट्ठ। विण्डं माढरगोतं, कालगवि गोयमं वंदे ॥३॥ गोयमगोत्तकुमारं, संपलियं तह य भयं वंदे । थेरं च अज्ज चुड्डू गोयमगुत्तं नमसामि ॥ ४ ॥ तं वंदिऊरण सिरसा, थिरसत्तचरित्तनाणसंपन्न । थेरं च संघवालिय, गोयमगुत्त परिणवयामि ॥ ५॥ वंदामि प्रज्जहत्थि च, कासवं खंतिसागरं घोरं । गिम्हाण पढममासे, कालगयं चेव सुद्धस्स ॥ ६ ॥ वंदामि अज्जधम्मं च, सुव्वयं सोलल द्धिसंपन्न । जस्स निक्खमणे देवो, छत्तं वरमुत्तमं वहइ ॥७॥ हत्थि कासवगुत्तं, धम्मं सिवसाहगं परिणवयामि । सोहं कासवगुत्तं, धम्म पि य कासवं वंदे ॥८॥ तं वंदिऊस सिरसा, थिरसत्तवरित्तनारणसंपन्न । थेरं च अज्जजंबु, गोयमगुत्तं नमसामि ॥६॥ मिउमद्दवसंपन्न, उवउत्तं नारण-दंसरण-चरित्ते । थेरं च नंदियं पि य, कासवगुत्तं परिणवयामि ॥१०॥
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