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________________ २८ ] | पट्टावलो-पराग भद्दस्स कासवगुत्तस्स अज्जनक्खत्ते थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥६॥ थेरस्स णं अज्जनक्खत्तस्स कासवगुत्तस्स अज्जरक्खे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥७॥ थेरस्त रणं अज्जरक्खस्स कासवगुत्तस्स अज्जनागे थेरे अंतेवासो गोयमसगोत्ते ॥६॥ थेस रणं अज्जनागस्स गोयमसगुत्तस्स अज्जजेहिले थेरे अंतेवासो वासिद्धसगुत्ते ॥६॥ थेरस्स रणं अज्जजेहिलस्स वासिद्धसगुत्तस्स अज्ज विण्हू थेरे प्रतेवाती माढरसगोते ॥१०॥ थेरस्स रणं अज्जविण्हुस्स माढरसगुत्तस्स अज्जकालए थेरे अतेवासो गोयमसगोत्ते ॥११॥" 'स्थविर आर्य फल्गुमित्र के स्थविर शिष्य मार्य धनगिरि वासिष्ठ गोत्रीय हुए । स्थविर आर्य धनगिरि के आर्य शिवभूति स्थविर कौत्स गोत्रीय हुए : स्थविर शिवभूति के स्थविर शिष्य मार्य भद्र काश्यप गोत्रीय हुए, स्थविर आर्यभद्र के स्थविर शिष्य मार्य नक्षत्र काश्यप गोत्रीय हुए। स्थविर आर्य नक्षत्र के स्थविर शिष्य प्रार्यरक्ष काश्यप गोत्रीय हुए। स्थविर प्रार्यरक्ष के स्थविर शिष्य आर्य नाग गौतम गोत्रीय हुए, स्थविर आर्य नाग के स्थविर शिष्य प्रार्य जेहिल वासिष्ठ गोत्रीय हुए, स्थविर आर्य जेहिल के स्थविर शिष्य प्रार्य विष्णु माठर गोत्रीय हुए, स्थविर मार्य विष्णु के स्थविर शिष्य पार्यकालक गौतम गोत्रीय हुए। ११ ।' ___"थेरस्स रणं प्रज्जकालगस्स गोयमसगुत्तस्स इमे दुवे थेरा अतेवासी गोयमसगुत्ता : थेरे अज्जसंपलिए, थेरे अज्जभद्दे ॥१२॥ एएसि दुण्हवि थेराग गोयमसगुत्तारण अज्जवुड्डे धेरै प्रतेवासी गोयमसगुत्ते ॥१३॥ थेरस्स रण अज्ज वुड्डस्स गोयमसगोत्तस्स अज्ज संघपालिए थेरे अतेवासी गोयमसगोत्ते ॥१४॥ थेरस्स ग अज्ज संघपालियस्स गोयमसगोत्तस्स अज्जहत्थो थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥१५॥ थेरस्स णं अज्जहत्थिस्स कासवगुत्तस्स अज्जधम्मे थेरे अंतेवासो सुव्वयगोत्ते ॥१६॥ थेरस्स रणं अज्जधम्मस्स सुव्वयगोत्तस्स प्रज्जसीहे थेरे अंतेवासी रासवगुत्ते ॥१७॥ थेरस्स रणं अज्जसोहस्स कासवगुत्तस्स अज्जधम्मे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥१॥ रस्स एं अज्जधम्मस्स कासवगुत्तस्स अज्ज संडिल्ले थेरे अंतेवासी ॥१९॥" 'स्थविर आर्य कालक के ये दो स्थविर शिष्य गौतम गोत्रीय हुए, स्थविर आय सम्पलित और स्थविर आर्यभद्र, इन दो स्थविरों के स्थविर ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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