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________________ प्रथम-परिच्छेद ] [ २७ ___ 'स्थविर मार्य सिंहगिरि के ये चार स्थविर शिष्य यथापत्य तथा आभिजात्य हुए, जिनके नाम : स्थविर धनगिरि, स्थविर मार्य वन, स्थविर आर्य समित, आर्य महद्दत्त, स्थविर मार्य समित से यहां ब्रह्मद्वीपिका शाखा निकली, स्थविर आर्य वज्र गौतम गोत्रीय से यहां आर्य वाजी शाखा निकली । २२० ।' "थेरस्स रणं अज्जवइरस्स गोतमसगोत्तस्स इमे तिन्नि थेरा अंतेवासो अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, तं० : थेरे अज्जवइरसेणे, थेरे अज्जपउमे, थेरे अज्जरहे। थेरेहितो णं अज्जवइरसेरोहितो एत्थ रणं अज्जनाइलो साहा निग्गया। थेरेहितो णं अज्जपउमेहितो एत्थ णं अज्ज पउमा साहा निग्गया । थेरेहितो णं प्रज्जरहेहितो एत्थ रणं अज्ज जयंती साहा निग्गया ॥२२१॥" स्थविर प्रार्य वज्र गौतम गोत्रीय के ये तीन स्थविर शिष्य हुए जो यथापत्य अभिज्ञात थे। उनके नाम : मार्य वज्रसेन, पायं पद्म और मार्य रथ थे। स्थविर प्रार्य वज्रसेन से यहां प्रार्थनागिली शाखा निकली, स्थविर मार्य पद्म से प्रार्य पद्मा और स्थविर प्रार्य रथ से यहां आर्य जयन्ती शाखा निकली । २२१ ।' "थेरस्स णं प्रज्जरहस्स वच्छसगोत्तस्स अज्जपूसगिरी थेरे अंतेवासी कोसियगोत्ते। थेरस्स णं अज्जपूसगिरिस्स कोसियगोत्तस्स अज्जफग्गुमिसे थैरे मंतेवासी गोयमसगुत्ते ॥२२२॥" 'स्थविर आर्य रथ वत्सगोत्रीय के कौशिक गोत्रीय शिष्य आर्य पुष्यगिरि हुए स्थविर मार्य पुष्यगिरि के शिष्य आर्य फल्गुमित्र गौतम गोत्रीय हुए ॥२२२॥ "थेरस्स रणं अज्जफग्गुमित्तस्स गोयमसगुत्तस्स अज्जधरणगिरी थेरे अंतेवासी वासिटुसगोत्ते ॥३॥ थेरस्स णं प्रज्जघरणगिरिस्स वासिटुसगोत्तस्स प्रज्जसिवभूई थेरे अंतेवासी कुच्छसगोत्ते ॥४॥ थेरस्स रणं प्रज्जसिवभूइस्स कच्छसगोत्तस्स प्रज्जभद्दे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥५॥ थेरस्स रण अज्ज ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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