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________________ ३६० । [पट्टावली-पराग - १६, समन्तभद्रसूरि १७, वृद्धदेवसूरि १८, प्रद्योतनसूरि १६, श्री मानदेवसूरि २०, श्री देवेन्द्रसूरि २१, श्री मानतुंगसूरि २२, श्री वीरसूरि २३, श्री जयदेवसूरि २४, श्री देवानन्दसूरि २५, श्री विक्रमसूरि २६, श्री नरसिंहसूरि २७, श्री समुद्रसूरि २८, श्री मानदेवसरि २६, श्री विबुधप्रभसूरि ३०, श्री जयानन्दसूरि ३१, श्री रविप्रभसरि ३२, श्री यशोभद्रसूरि ३३, श्री जिनभद्रसूरि ३४, श्री हरिभद्रसूरि ३५, श्री देवसूरि ३६, श्री नेमिचन्द्रसूरि ३७, सुविहित चूडामणि उद्योतनसूरि ३८, श्री उद्योतनसूरि के पट्ट पर वर्धमानसूरि ३६ हुए, श्री वर्धमानसूरि के पट्ट पर श्री जिनेश्वरसूरि जिन्होंने प्रणहिल पत्तन में दुर्लभराज-सभा में सं० १०८० में "खरतर" विरुद प्राप्त किया, जिनेश्वरसूरि के पट्ट पर श्री जिनचन्द्रसूरि हुए जिन्होंने “संवेगरंगशाला" ग्रन्थ बनाया और मोजदीन पिञ्जर को दिल्ली के राज्य का भविष्य कथन किया था जो सही उतरा। श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्ट पर अभयदेवसूरि हुए, ब्याख्यान में षड्रसों का पोषण करने से गुरु ने प्रार्याश्चत्त के रूप में छः महीने तक माचामाम्ल करने का दण्ड दिया, जिससे उनके शरीर में कुष्ठ रोग की उत्पत्ति हुई, स्तम्भनक पार्श्वनाथ मूर्ति प्रकटन, नवांगी वृत्तिकरणादि सम्बन्ध स्वयं लमझ लेने चाहिए, अन्त में कपड़वंज नगर में अनशन द्वारा शरीर छोड़कर चौथे देवलोक गए। श्री अभयदेवसूरि के पट्ट पर जिनवल्लभसूरिजी हुए जो पूर्वावस्था में कूर्चपुरीय जिनेश्वरसूरिजी के शिष्य थे, बाद श्री अभयदेवसूरिजी के पास उपसम्पदा लेकर उनके शिष्य हुए । प्राचार्य अभयदेवसूरिजी जिनवल्लभ को अपना पट्टधर बनाना चाहते थे, परन्तु परगच्छीय को कैसे पट्ट दिया, इस प्रकार के लोकापवाद से डरते हुए वे उसे पट्ट नहीं दे सके और अपने शिष्य प्रसन्नचन्द्राचार्य को पट्ट देने का कह गए। प्रसन्नचन्द्राचार्य ने देवभद्राचार्य को जिनवल्लभ को पट्टधर बनाने की सूचना को, उसके बाद बारह वर्ष तक देवभद्राचार्य ने गच्छ का भार ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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