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________________ ३४८ ] [ पट्टावलो-पराग जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण और देवद्धि गणि क्षमाश्रमण के नाम लिख दिये, . इन श्रुतधरों का न पट्टक्रम से सम्बन्ध है, न कालक्रम से ही, जैसे नाम याद आए वैसे ही एक के बाद एक लिख दिए । हरिभद्रसूरि के बाद के सभी श्रुतधर उनके पूर्ववर्ती हैं, तब लेखक ने हरिभद्र को सब से पूर्व में लिखा हैं । देवर्धिगणि के पट्ट पर शीलाङ्काचार्य का नाम लिखना भी इतिहास का अज्ञान ही सूचन करता है। श्री वर्धमानसूरि तथा इनके पूर्ववर्ती सभी प्राचार्यों के नाम कल्पनाबल से लिखे गए हैं, वास्तव में यह पट्टावलो श्री वर्धमानसूरिजी से प्रारम्भ होती है, यही कहना चाहिए। "दुर्लभराज की सभा में जिनेश्वरसूरि का चैत्यवासियों के साथ वाद हुमा" यह कथन भी एक विवादग्रस्त प्रश्न है, क्योंकि सं० १०८० के पहले ही राजा दुर्लभसेन सोलंकी इस दुनिया से विदा हो चुके थे। गुजरात पाटन के सोलंकी राजामों की वंशावली प्राचीन शिलालेखों तथा ताम्रपत्रों के माधार से विद्वानों ने इस प्रकार तैयार की है - ८९७ दुर्लभसेन १०२२ (१) मूलराज सोलंकी इ० ९४२ से १६७ तक (२) चामुण्ड , १०१० (३) वल्लभसेन . १०१० ॥ १०१० , ॥ १०२२ भीमदेव (प्रथम) ॥ १०७१ (६) करण १०७२ ॥ १०६४ सिद्धराज १०६४ , ११४३ (८) कुमारपाल ११४३ , ११७४ (8) अजयपाल " ११७४ , ११७७ (१०) मूलराज (दूसरा) , ११७७ ॥ ११७६ (११) भीमदेव (दूसरा) , " ११७६ ॥ १२४१ ॥ (१२) त्रिभुवनपाल " १२४१ ॥ १२४१ ॥ उक्त वंशावली में राजा दुर्लभसेन जिसको खरतरगच्छीय लेखकों ने दुर्लभराज लिखा है, इसका राजत्वकाल इ० १०१० से १०२२ तक रहा था, ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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