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________________ हस्तलिखित खरतर-गछौय पहावलियां हमारे शास्त्र संग्रह में कुछ हस्तलिखित खतर-पट्टावलियां भी हैं, जिनमें नम्बर २३२४,२३२७,२३२८,२३२६,२:३३ की पट्टावलियां खरतरगच्छ के प्राचार्यो की परम्परा का प्रतिपादन करती हैं, यद्यपि इन पट्टावलियों में अव्यवस्थितता है, फिर भी इनमें से कुछ पट्टावलियों में विशेष वृत्तान्त भी मिलते हैं, अतः इन का अवलोकन लिखना प्रासंगिक होगा। पट्टावली नम्बर २३२४ - उक्त पट्टावली १५ पत्रात्मक है, इसका लेखन समय विक्रम की सत्रहवीं शती का उत्तरार्ध है, लेखक ने अपना नाम नहीं लिखा फिर भी यह पट्टावली श्री जिनराजसूरि के समय की है, इसमें कोई शंका नहीं। पट्टावली लेखक का निम्नांकित उल्लेख इस पट्टावली का समय सूचित करता है - "श्री जिन चन्द्रसूरि अनेक अवदातकीया वृद्धावस्तायि पातिसाहजो कनई जई षट्दर्शन मुगता कीधा, अन्त समयि प्रसरण करो सं० १६७० पासु बदि २ बोलपुरइ दिवगत थया । दिवंगत हुयां पछई मुहपतो अग्निरइ विषइ साबती रही, तेहना कितराएक अवदात कहीयह तेहनइ पाटनइ विषइ श्री जिनसिंघसूरि हूया जाणिवा, चौपड़ा गोत्रीय तेहना जितरा दिहाड़ा तितरा पवाडा ते कितरा एक कहियइ, श्री संघइ दृष्टइ दीठा हसी तेहनई प टरइ बिषय बोहिथरा बंश सिणगारहार चूडामणि समान श्री जिनराजसूरि विजयमान प्रवर्तइ. तेहनई पाटरइ विषइ बोहथहरा वंशीय श्री जिनसागरसूरि थापी (मू० ग्रन्थाग्रन्थ ३७६ ॥छः॥) "महो उपाध्याय श्री हंसप्रमोद गरिण, महो उपाध्याय श्री चारित्रदत्त गरिण, तत् शिष्य पंडित पोथाजी, तत् शिष्य पं० पारदलिषितम् ॥छः॥" उपर्युक्त पट्टावली में प्राचार्य परम्परा श्री प्रार्यरक्षितसूरिजी से प्रारम्भ की है और भायंरक्षितसूरि के पट्टपर प्राचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी को बिठाया ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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