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तृतीय-परिच्छेद ]
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ऐसा लेखक लिखता है, यह भी गलत है - जिनेश्वरसूरि का नगरप्रवेशोत्सव उनके भक्तों ने किया था और वस्तुपाल भी अपने मित्रों के साथ उसमें सम्मिलित हुए थे इतना ही गुर्वावली में लिखा है ।
३. बृहद् गुर्वावली में संवत् १३५३ में मुसलमानों द्वारा पाटन का भंग होने की बात गुर्वावलीकार ने लिखी है, यह भी सुनी सुनायी झूठो अपवाह लिख दी है, पाटन का भंग १३५३ में नहीं किन्तु १३६० में हुमा था, पहले मुसलमान पाटन पर चढ़ाई कर गुजरात तरफ माये थे, सहो परन्तु पाबु के निकट से ही गुजराती सैन्य की मार खाकर वापस भाग गए थे । सं० १३६० तक पाटन में वाघेले सोलंकियों का ही राज्य था।
यों तो बृहद्गुर्वावली प्रतिशयोक्तियों, अफवाहों और कल्पित वर्णनों का खजाना है, परन्तु उन सभी बातों की चर्चा करने से कोई सारांश नहीं निकलता, जो कुछ इतिहास और वास्तविकता से विपरीत बातें प्रतीत हुई उनमें से कतिपय वृत्तान्तों की खरी समीक्षा लिखनी पड़ी है, प्राशा है, इसे पढ़कर पाठक गरण सार ग्रहण करेंगे ।
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