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तृतीय- परिच्छेद ]
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वहां से फलौदी की यात्रा कर देशान्तरीय यात्रिकों को अपने-अपने स्थान निवास स्थान योगिनीपुर में कार्तिक वदि ४
पहुँचा कर संघपति ने अपने को प्रवेश किया ।
सं० १३८१ वैशाख सुदि ५ को सा० तेजपाल, सा० रुदपाल ने जलयात्रा पूर्वक प्रतिष्ठा महोत्सव कराया । इस उत्सव में श्री जिनकुशलसूरिजी ने जालोर योग्य महावीर देव का बिम्ब, देवराजपुर युगादिदेव का बिम्ब, शत्रुञ्जय स्थित बूल्हा वस्ति प्रासाद जीर्णोद्धारार्थ श्रीश्रेयांस प्रमुख अनेक बिम्ब, शत्रुञ्जय स्थित स्वप्रासादमध्यस्थ अष्टापद योग्य चौबीस जिनबिम्ब इत्यादि शैलमय १५० जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की । उच्चापुरीय योग्य श्रीजिनदत्तसूरि, जालोर तथा पाटन योग्य जिनप्रबोधसूरि और देवराजपुर योग्य जिनचन्द्रसूरि की मूर्तियों की और अम्बिका श्रादि धिष्ठायकों की प्रतिष्ठा की और अपने भण्डार योग्य श्रेष्ठ समवसरण भी प्रतिष्ठित किया । देवभद्र, यशोभद्र क्षुल्लकों की उपस्थापना की, सुमतिसार, उदयसार, जयसार, क्षुल्लकों और धर्मसुन्दरी, चारित्रसुन्दरी, क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी। जयधर्म गरिए को उपाध्याय पद दिया, अनेक साध्वी श्राविकानों ने माला ग्रहण की।
पाटन से श्रीपूज्य भीमपल्ली पहुँचे और वैशाख वदि १३ को महावीर देव को नमस्कार किया । उसी वर्ष में सा० वीरदेव श्रावक द्वारा रचित संघ के साथ जाने के लिए जिनकुशलसूरिजी ने स्वीकार किया । सा० वीरदेव ने बादशाह गयासुद्दीन से फर्मान निकलवा के नाना स्थानों के समुदायों को कुंकुंम पत्रिका देकर बुलाया, श्रोजिन कुशलसूरिजी भी सा० वीरदेव तथा संघ के प्राग्रह से चतुर्मांस्य निकट होने पर भी ज्येष्ठ दि ५ को भोमपल्ली से संघ के साथ रवाना हुए। श्री वायड़, सेरीशक आदि स्थानों में ठहर कर ध्वजारोप की रस्म करता हुप्रा संघ सरखेज नगर पहुँचा । निकटवर्ती प्राशापल्ली नगर के विधि-समुदाय की प्रार्थना से जिनकुशलसूरि कतिपय श्रावकों के साथ श्राशापल्ली पधारे, प्राशापल्ली की यात्रा कर आप वापस संघ में प्राए और वहां से सर्व संघ स्तम्भतीर्थ पहुंचा, नवांग वृत्तिकार श्रभयदेवसूरि प्रकटित श्री स्तम्भनक पार्श्वनाथ
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