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________________ ३३६ ] [ पट्टवलो-परग आषाढ़ वदि ६ के दिन तोधिराज शत्रुञ्जय पर चढ़े और युगादिदेव की यात्रा को । संघपति श्री रयपति ने सुवर्णटकों से नवांग पूजा की और करवाई, अन्य महद्धिक श्रावकों ने भी रूप्य टंकादि से पूजा की। उमी दिन श्री युगादिदेव के आगे देवभद्र और यशोभद्र क्षुल्लकों की दीक्षा सम्पन्न हुई और आषाढ वदि ७ को जल-यात्रा करके श्री युगादिदेव के मूलचैत्य में स्वकारित नेमिनाथ बिम्ब प्रमुख अनेक जिनबिम्बों, भण्डागार योग्य समवसरण, जिनातिसूरि, जिनेश्वरसूरि प्रमुख अनेक गुरु-मूर्तियों की श्री जिनकुशलसूरिजी ने प्रतिष्ठा वी और उसी दिन पाटन में प्रतिष्ठापित युगादिदेव के मूल नायक बिम्ब की शत्रुञ्जय पर नवनिर्मित प्रासाद में स्थापना की। आषाढ़ वदि ६ को मालारोपण प्रादि उत्सव युगादिदेव के मूलचैत्य में किया, उसी दिन सुखकी ति गरिण को वाचनाचार्य पद दिया और नूतन प्रासाद में ध्वजारोप महोत्सव हुआ । उक्त महोत्सव में इन्द्रपद आदि के चढावे तथा अन्य तरीकों से युगादिदेव के भण्डागार में द्विवल्लक ५०००० द्रम्म उत्पन्न हुए। बाद में श्रीपूज्य संघ के साथ तलहटी में संघ के पड़ाव पर पाए और वहां से गिरनार तीर्थ की यात्रा के लिए जूनागढ़ की तरफ चले और आषाढ शुक्ल १४ के दिन संघ ने गिरनार पर श्री नेमिनाथ की यात्रा की। यहां पर भी सा० रयपति प्रमुख श्रावकों ने सुवर्ण टंकादि से पूजा की और संघ चार दिन ठहरा तथा महापूजा, ध्वजारोपादि महोत्सव किए। यहां नेमिनाथ के देवभण्डार में द्विवल्लक ४० हजार द्रम्म उत्पन्न हुए, उसके बाद पर्वत से उतर कर प्राचार्य तलहटी में संघ के स्थान पर आए और वहां से संघ वापस पाटन के लिए रवाना हुआ। संघवी रयपति पूज्य प्राचार्य को वन्दन कर पाटन से रवाना हुप्रा, बीच में कोशवाणा में श्री जिनचन्द्रसूरि के स्तूप पर ध्वजारोप किया, फिर उपमेय से मिलती-जुलती हो । भाल प्रदेश ऐसा स्थान है जहां घास तक नहीं उगता, तब दण्डकारण्य ऐसी घनी वनस्पति वाला प्रदेश है, जहां सामान्य मनुष्य चल भी नहीं सकता। ऐसे एक दूसरे के विरुद्ध स्वभाव के दो पदार्थों को आपस में उपमेय उपमान बनाना अज्ञान का परिणाम है । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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