________________
तृतीय-परिच्छेद ]
[ ३२७
मालारोपणादि नन्दिमहोत्सव हुमा, बाद में श्री शीतलदेव महाराज की विज्ञप्ति से और श्रावकों को प्रार्थना से श्रीपूज्य शम्यानयन श्री शान्तिनाथ को यात्रार्थ गए।
__ सं० १३६१ में शान्तिनाथ विधिचैत्य में द्वितीय वैशाख सुदि ६ को शम्यानयन में प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ और १० को मालारोपणादि-नन्दिमहोत्सव हुआ, जिसमें पं० लक्ष्मीनिवास गरिण को तथा पं० हेमभूषण गरिण को वाचनाचार्य-पद दिया गया।
जालोर के संघ की प्रार्थना से श्रीपूज्य जालोर पधारे। वहां संवत् १३६४ वैशाख कृष्ण १३ को राजशेखर गणि को आचार्य-पद प्रदान किया, बाद में श्रीपूज्य भीमपल्ली पधारे ।
भीमपल्ली से पाटन के समुदाय की प्रार्थना से आप पाटन पहुंचे, बाद में स्तम्भतीर्थ कोटडी के श्रावकों को प्रार्थना से शेरीषक पार्श्वनाथ देव की यात्रा करके श्रीपूज्य स्तम्भतार्थ पहुँचे ।
वहां से संवत् १३६६ के ज्येष्ठ वदि १२ को सा० जैसल द्वारा संयोजित संघ के साथ श्रीपूज्य, जयवल्लभ गरिण, हेमतिलक गणि प्रादि ग्यारह साधु और प्र० रत्नवृष्टि गणिनी प्रादि १५ साध्वियों के परिवार सहित स्तम्भतीर्थ से महातीर्थो की यात्रा के लिए निकले, क्रमशः संघ पीपलाउली गांव पहुँचा। वहां शत्रुञ्जय महातीर्थ पर्वत के दर्शन कर संघ मे उत्सव मनाया। वहां से श्रीपूज्य ने श्री युगादिदेव की यात्रा की, इन्द्रपदादिमहोत्सव हुआ। वहां ज्येष्ठ शुक्ला १२ को मालारोपणादि महोत्सव संघ की तरफ से हुआ। वहां से संघ गिरनार की तरफ रवाना हुप्रा और गिरनार की तलहटी में जाकर संघ ने अपना पड़ाव डाला। श्रीपूज्य समुदाय के साथ पर्वत ऊपर चढ़े और नेमिनाथ की यात्रा की, श्रावकों ने इन्द्रपदादि के चढ़ावे बोले । वहां से वापस लौटकर श्रीपूज्य संघ के साथ स्तम्भतीर्थ पाए और चातुर्मास्य वहां पर ही कर भरपाल श्रावक की सहायता से पूज्य ने स्तम्भतीर्थ की यात्रा को, वहां से वीजापुर जाकर श्री वासुपूज्य की यात्रा की।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org