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[ पट्टावलो-पराग
कुण्डग्राम, रत्नपुरादि गांवों में तीर्थयात्रा की और राजगृह समीप उद्दण्डविहार में चातुर्मास्य किया और उसी वर्ष में भीमपल्ली से विहार कर अनेक नगरों के समुदायों के साथ श्री विवेकसमुद्र उपाध्याय प्रमुख साधु मण्डली सहित श्रीपूज्य ने शंखेश्वर पार्श्वनाथ की यात्रा को । वहां से जिनचन्द्रसूरि पाटन पहुँचे, वहां के सर्व चैत्यों की यात्रा कर श्रीपूज्य वापस भीमपल्ली आए और वीजापुर के समुदाय की प्रार्थना से चातुर्मास्य वीजापुर में किया, वहां सं० १३५३ मार्ग० कृ० ५ को वासुपूज्य विधि-चैत्य में मुनिसिंह. तपःसिंह और नयसिंह साधुनों को दीक्षा हुई।
वहां से जालोर की तरफ विहार किया और उसी वर्ष में सा० सीहा सा० माण्डव्यपुरीय मोहन श्रावकों ने संघ की व्यवस्था की, अनेक गांवों में विधि-समुदाय के साथ जालोर से वैशाख कृष्ण ५ को प्रस्थान कर अनेक मुनिसमुदाय परिवृत श्रीपूज्य ने संघ के साथ अर्बुदाचल पहुँच कर श्री युगादिदेव और नेमिनाथ की यात्रा की, वहां पर इन्द्र पद प्रादि के चढ़ावों द्वारा संघ ने बारह हजार द्रम्म खर्च किये और सकुशल संघ वापस जालोर पहुँचा।
सं १३५४ ज्येष्ठ वदि १० को जालोर महावीर विधिचत्य में नन्दिमहोत्सव हुआ, जिसमें बीरचन्द्र, उदयचन्द्र, अमृतचन्द्र साधुनों की और जयसुन्दरी साध्वी की दीक्षा हुई। उसी वर्ष में प्राषाढ़ शुक्ल २ को सिराणा गांव में महावीर-प्रासाद का जीर्णोद्धार होकर महावीरविम्ब की स्थापना हुई।
सं० १३५६ में राजा श्री जैसिंह को विज्ञप्ति से मार्गशीर्ष वदि ४ को जैसलमेरु पहुँचे, वहां पर ही संवत् १३५७ में मार्गशीर्ष शुक्ल को जयहंस, पद्महंस की दीक्षा हुई। सं० १३५८ के माघ सुदि १० को पार्श्वनाथ-विधिचैत्य में सम्मेत-शिखर आदि जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा का उत्सव हुप्रा।
सं० १३५६ फाल्गुन वदि ११ को श्रीपूज्य ने बाडमेर जाकर युगादिदेव को नमस्कार किया और वहीं पर सं० १३६० के माघ वदि १० को
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