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________________ ३१४ ] [ पट्टावली-पराग मति गणिनी को प्रवर्तिनी-पद दिया, वीर कलशगणि, नन्दिवर्द्धन और विजयवर्द्धन की दीक्षा हुई । सं० १२८४ में वोजापुर में वासुपूज्य की स्थापना हुई और आषाढ सुदि २ को अमृतकी ति गणि, सिद्धकीति गरिण और परित्रसुन्दरी तथा धर्मसुन्दरी गणिनी की दीक्षा हुई । सं० १२८५ ज्येष्ठ सुदि २ को कीर्तिकलश गणि, पूर्णकलश और उदयश्री गणिनी की दीक्षा, ज्येष्ठ सुदि ६ को वासुपूज्य भवन पर ध्वजारोप और सं० १२८६ के फाल्गुन वदि ५ को बीजापुर में विद्याचन्द्र, न्यायचन्द्र, अभयचन्द्र गणि की दीक्षा । ____सं० १२८७ के फाल्गुन सुदि ५ को पालनपुर में जयसेन, देवसेन, प्रबोधचन्द्र, अशोकचन्द्र गणि और कुलश्री गणिनी तथा प्रमोदश्री गरिणनी की दीक्षा । सं० १२८८, भाद्रपद सुदि १० को जालोर में स्तूपध्वज-प्रतिष्ठा और माश्विन सुदि १० को स्तूपध्वजारोप पालनपुर में और पौष सुदि ११ जालोर में शरच्चन्द्र, कुशलचन्द्र, कल्याणकलश, प्रसन्नचन्द्र, लक्ष्मीतिलक गरिण, वीरतिलक, रत्नतिलक और धर्ममति, विनयमति गणिनी, विद्यामति गणिनी और चारित्रमति गणिनी की दीक्षा । सं० १२८८ (६) को चित्तौड़ में ज्येष्ठ सुदि १२ को प्रजितसेन, गुणसेन, अमृतमूर्ति, धर्ममूर्ति तथा राजीमति, हेमावलि, कनकावलि, रत्नाबलि गणिनी, मुक्तावलि गणिनी की दीक्षा । प्राषाढ़ वदि २ ऋषभदेव, नेमिनाथ और पाश्र्वनाथ की प्रतिष्ठा । सं. १२८९ उज्चयन्त, शत्रुक्षय, स्तम्भनक तीर्थों की यात्रा की। स्तम्भतीर्थ में वादियमदण्ड नामक दिगम्बर के साथ गोष्ठी, नगर-प्रवेश में सपरिवार महामात्य श्री वस्तुपाल श्रीपूज्य के सामने गया। सं० १२६१ वैशाख सुदि १० को जालोर में यतिकलश, क्षमाचन्द्र, शीलरत्न, धर्मरत्न, चारित्ररत्न, मेघकुमार गणि, अभयतिलक गणि, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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