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________________ तृतीय-परिच्छेद ] [ ३१५ श्रीकुमार तथा शीलसुन्दरी गणिनी और चन्दनसुन्दरी की दीक्षा। ज्येष्ठ यदि २ मूलार्क में श्री विजयदेवसूरि को आचार्य-पद प्रदान । सं० १२६४, श्री संघहितोपाध्याय को पद प्रदान । सं० १२९६ फाल्गुन वदि ५ पालनपुर में प्रमोदमूर्ति, प्रबोधमूर्ति और देवमूर्ति गरिण को दोक्षा। ज्येष्ठ सुदि १० को श्री शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा । सं० १२९७ में चैत्र सुदि १४ को देवतिलक, धर्मतिलक की दीक्षा। सं० १२६८ वैशाख की ११ को जालोर में ध्वजदण्डारोप कराया। सं० १२६६ प्रथम प्राश्विन वदि २ को मन्त्री कुलघर की दीक्षा, नाम कुलतिलक मुनि। सं० १३०४ वैशाख सुदि १४ को विजयवर्द्धन गरिण को प्राचार्य-पद, जिनरत्नाचार्य नाम दिया। त्रिलोकहित, जीवहिल, धर्माकर, हर्षदत्त, संघप्रमोद, विवेकसमुद्र, देवगुरुभक्त, चारित्रगिरि, सर्वज्ञभक्त और त्रिलोकानन्द की दीक्षा हुई। सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १० को पालनपुर में महावीर, ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ के बिम्बों की और नन्दीश्वर को प्रतिष्ठा की। सं० १३०६ में ज्येष्ठ सुदि १३ को श्रीमाल में कुन्थुनाथ, अरनाथ की प्रतिमा-प्रतिष्ठा और दूसरी बार ध्वजारोपण करवाया। सं० १३०६ मार्गशीर्ष सुदि १२ को पालनपुर में समाधिशेखर, गुणशेखर, देव शेखर, साधुभक्त और वीरवल्लभ मुनि तथा मुक्तिसुन्दरी साध्वी की दीक्षा और उसी वर्ष में माघ सुदि १० को शान्तिनाथ, अजितनाथ, धर्मनाथ, वासुपूज्य, मुनिसुव्रत, सीमन्धर स्वामी और पद्मनाभ की प्रतिमानों की प्रतिष्ठा कराई। उसी वर्ष बाडमेर में प्रादिनाथशिखर पर दण्डकलश प्रतिष्ठित किए। सं७ १३१० वैशाख सुदि ११ जालोर में चारित्रवल्लभ, हेमपर्वत, अचलचित्त, लाभनिधि, मोदमन्दिर, गजकीति, रत्नाकर, गतमोह, देवप्रमोद, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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