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________________ तृतीय-परिच्छेद ] [ ३१३ (६) श्री जिनेश्वरसूरि - सं० १२७८ के माघ सुदि ६ को जालोर में जिनपतिसूरि के पट्टपर प्राचार्य सर्वदेवसूरि ने वीरप्रभ गरिंग की पदस्थापना की और "जिनेश्वरसूरि" यह नाम रक्खा, माघ सुदि ६ के दिन यशकलश, विनयरुचि, बुद्धिसागर, रत्नकीति, तिलकप्रभ, रत्नप्रभ और अमरकीर्ति गरिण को जालोर में दीक्षा दो। बाद में वहां के यशोधवल के साथ विहार कर श्रीमाल जाति के श्री विजयहेमप्रभ, श्री तिलकप्रभ, विवेकप्रभ तथा चारित्रमाला गणिनी, सत्यमाला गणिनी इन सब को ज्येष्ठ सुदि १२ के दिन दीक्षा दी । मागे प्राषाढ़ सुदि १० को श्रीमाल में समवसरण प्रतिष्ठा तथा शान्तिनाथ स्थापना की, जालोर में देवगृह का प्रारंभ हुप्रा । सं० १२७६ के माघ सुदि ५ को अर्हद्दत गरिण, विवेकत्रो गरिणनी, शीलमाला गणिनी, चन्द्रयाला गणिनी और विनयमाला गणिनी की जालोर में दीक्षा हुई । सं० १८० के माघ सुदि १२ को श्रीमाल में ज्ञात्तिनाथ-भवन पर ध्वजारोप और ऋषभनाथ, गौतमस्वामी, जिनपतिसूरि, मेघनाद क्षेत्रपाल और पद्मावता देवी की प्रतिमानों की प्रतिष्ठा की । फाल्गुन वदि १ को कुमुदचन्द्र, कनकचन्द्र, तथा पूर्णश्री गणिनी, हेमश्री गणिनी की दीक्षा हुई। सं० १२८० के वैशाख सुदि १४ के दिन पालनपुर के स्तूप में जिनाहितोपाध्याय ने जिनपतिसूरि की प्रतिमाप्रतिष्ठा की । सं० १२८१ के वैशाख सुदि ६ को जालोर में विजयकीर्ति, उदयकीर्ति, गुणमागर, परमानन्द और कमलश्री गणिनी की दीक्षा हुई, वहीं पर ज्येष्ठ सुदि ६ को महावीर भवन पर ध्वजारोप हुआ । सं० १२८३ के माघ वदि २ को बाड़मेर के ऋषभदेव भवन पर ध्वजारोप हुआ, माघ वदि ६ को सूरप्रभ को उपाध्याय-पद और मंगल Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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