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________________ तृतीय-परिच्छेद ] [ २९१ एक दिन जिनशेखर ने व्रत के विषय में कुछ अनुचित कार्य किया, फलस्वरूप देवभद्राचार्य ने जिनशेखर को समुदाय से निकाल दिया, जहां होकर स्थण्डिल भूमि जाते हैं, वहां जाकर जिनशेखर खड़ा रहा। जिस समय बहिभूमि में जाते हुए जिनदत्तसूरि वहां पहुंचे और जिनशेखर उनके पैरों में गिरकर बोला - "मेरा यह अपराध क्षमा करियेगा" फिर ऐसी भूल न करूंगा । दयासागर श्री जिनदत्तसूरिजी ने उनको फिर समुदाय में मिला दिया, पता लगने पर प्राचार्य ने कहा – जिनशेखर को समुदाय में प्राचायौं: श्री जिनदत्तसूरिः गच्छाद्वहिष्कृतः ततः पदस्थापनाकारक श्रावकं पृष्ट्वा वर्षत्रयावधिं कृत्वा निर्गतः ॥" अर्थात् = जिनवल्लभसूरि द्वारा निकाले हुए साधु को फिर समुदाय में लेने के अपराध में गच्छ के १३ प्राचार्यो ने श्री जिनदत्तसूरि को गच्छ से बहिष्कृत किया, तब पदस्थापनाकारक श्रावक को पूछकर तीन वर्ष के लिए जिनदत्तसूरि निकल गए। खरतरगच्छ की एक अन्य पट्टावली में जो जिनराजसूरि तक के आचार्यो की परम्परा बताने वाली है और सत्रहवीं शदी में लिखी हुई है, जिनदत्तसूरि के उक्त प्रसंग में - "बीणई दीनि बाहरि गया छई, श्री जिनदत्तसूरि, तिवारइ, जिनशेखर आवी पगे लागऊ, कह्यऊ मारु x x x x x x x x . माहि घातो, गुरु साथइ लेई माव्या अनेरे आचार्ग काऊ एकाढयऊ हुंतप्रो तम्हे अणपूछिइ किममाहि प्राण्यो, तिवारइ जिनदत्तसूरि कामो म्हारइ दाइ आणइ मइ घाल्यो, श्री जिनवल्लभसूरि न ओ एगुराहि जिनषेखर, समस्त संघ १४ प्राचार्य मिली कह्यो एबारउ काढनो नहिंतर थेई विहार करो, जिनदत्तसूरि विहार किधरो, उपवास ३ करी स्मरयों हरिसिंहाचार्य देवलोक हूंती प्राव्यमो, मूनइ किसइ अथि स्मरओ तू हे, कह्यो मुहूर्त ३ बीजई मुह ति मूनई पाट हो, गच्छसू विरोध ह यत्रों किसी-किसी दिसि विहार करो, मारुवाडि मरुस्थलि दिशि विहार करि जेति तुम्हें स्मरस्यो तेथी हूं जुदडं।" हमारे पास एक २६ पत्रात्मक बड़ी गुर्वावली है, उसमें जिनदत्तसूरि का वृत्तान्त क्षमाकल्याणकमुनि का लिखा हुआ है, उसमें जिनदत्तसूरि को गच्छ के प्राचार्यों द्वारा गच्छ बाहर निकालने की सूचना तक नहीं है, उपर्युक्त खरतर Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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