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________________ प्रथम-परिच्छेद ] गोत्रीय और संभूतविजय स्थविर माठर गोत्रीय, स्थविर आर्य भद्रबाहु के ये चार स्थविर शिष्य हुए, जो निजसन्तान तुल्य पौर प्रख्यात थे। उनके नाम स्थविर गोदास, स्थविर अग्निदत्त, स्थविर यज्ञदत्त और स्थविर सोमदत्त थे. ये सभी काश्यप गोत्रीय थे, स्थविर गोदास से यहां गोदास नामक गण निकला। उसकी ये चार शाखाएँ इस प्रकार कही जाती हैं, जैसे : - ताम्रलिप्तिका, कोटिवर्षीया, पौण्डवर्धनिका और दासीकर्पटिका । ॥२०७॥ __ “थेरम्स रणं अज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमे दुवालसरा अंतेवासी प्रहावच्चा अभिष्णाया होत्था, तंजहा । नंदणभद्रुवनंदणभद्द तह तीसभद्द जसभद्दे । थेरे य सुमणभद्दे, मरिणभद्दे पुग्नभद्दे य ॥१॥ थेरे य थूलभद्दे, उज्जुमती जंबुनामधेज्जे य । थेरे य दोहभद्दे, थेरे तह पंडुभद्दे य ॥२॥" थेरस्स रणं प्रज्जसंभूइविजयस्स माढरसगोत्तस्स इमानो सत्त अंतेवासिणीमो अहावच्चानो अभिन्नातानो होत्या, तंजहा : जक्खा य जक्खदिन्ना, भूया तह होइ भूयदिन्ना य । सेरणा, वेरणा, रेरणा, भगिरणीयो थूलभद्दस्स ॥१॥२०॥ * इनमें पहली शाखा "ताम्रलिप्तिका" की उत्पत्ति वंग देश की उस समय की राजधानी ताम्रलिप्ति वा ताम्रलिप्तिका से थी जो दक्षिण बंगाल का एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था। आजकल यह स्थान "तमलुक" जिला मेदिनोपुर बंगाल में है। दूसरी शाखा "कोटिवर्षीया" की उत्पत्ति कोटिवर्ष नगर से थी, यह नगर 'राठ' देश (प्राजकल का मुर्शिदाबाद जिला पश्चिमी बंगाल) की राजधानी थी। तीसरी शाखा "पौण्डवर्धनिका" थी जो पुण्ड्वर्धन (उत्तरो बंगाल की राजधानी गंगा के उतरी तट स्थित पौण्ड वर्धन नगर) से उत्पन्न हुई थी। पृण्डवर्धन को आजकल पाण्डुमा" कहते हैं (फिरोजाबाद) मात्दा से ६ मील उत्तर की ओर था। इसमें राजशाही, दीनाजपुर, रंगपुर, नदिया, वीरभूम, मिदनापुर, जंगलमहल, पचेत और चुनार सामिल थे। और चौथी शाखा पूर्व बंगाल के समुद्र समीपवर्ती "दासीकर्पट" नामक स्थान से प्रसिद्ध हुई थी। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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