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| पट्टावली-पराग
स्थविर प्रार्य संभूतविजयजी के ये १२ स्थविर शिष्य हुए, जो सन्तान तुल्य प्रसिद्धिप्राप्त थे। उनके नाम ये हैं : नन्दनभद्र, उपनन्दनभद्र, तिष्यभद्र, यशोभद्र, स्थविर सुमनोभद्र, मणिभद्र, पूर्णभद्र, स्थविर स्थूलभद्र, ऋजुमति, जम्बूनामा, स्थावर दीर्घ भद्र तथा स्थविर पाण्डुभद्र ||२||
स्थविर प्रार्थं संभूतविजयजी की ये सात शिष्याएँ हुईं, जो प्रपत्यसमान प्रसिद्धिप्राप्त थीं, उनके नाम ये हैं : यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेना, वेना और रेगा ये प्रार्य स्थूलभद्र की बहनें थीं ॥ २०८ ॥
"थेरस्स र अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगोत्तस्स इमे दो थेरा ग्रहावच्चा प्रभिन्नाया होत्या, तंजहा-थेरे श्रज्जमहागिरी एलावच्छसगोते, थेरे सुहत्थो वासिसगोत्ते । थेरस्स गं प्रज्जमहागिरिस्स एलावच्छसगोतस्स इमे घट्ट थेरा प्रवासी अहावच्चा प्रभिन्नाया होत्या । तंजहा : थेरे उत्तरे, थेरे बलिस, थेरे धड्डू, थेरे सिरिड्ड े, थेरे कोडिन्ने, थेरे नागे, थेरे नागमित्ते, थेरे छडलए रोहगुत्ते कोसिए गोत्रणं । येंरेहितो गं छडलए हितो रोहगुत्तेहितो- को सियगोत्तहितो तत्थ गं तेरासिया निग्गया । थेरेहितो गं उत्तरबलिसहितो तत्थ र उत्तरबहिस्सद्गणे नामं गणे निग्गए, तस्स रगं इमा चारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तंजहा : कोलंबिया, सोत्तिवत्तिया, कोडंबारगी, चंदनागरी ॥ २०६॥"
' स्थविर प्रार्य स्थूलभद्र के ये दो स्थविर शिष्य थे, जो यथापत्य अभिज्ञात थे। इनके नाम स्थविर श्रार्यं महागिरि एलावत्सगोत्रीय और स्थविर प्रार्य सुहस्ती वासिष्टगोत्रीय, स्थविर आर्य महागिरि के ये आठ स्थविर शिष्य थे, जो यथापत्य और अभिज्ञात थे । उनके नाम ये हैं : स्थविर उत्तर, स्थविर बलिस्सह, स्थविर धनाढ्य, स्थविर श्रीश्राढ्य, स्थविर कौडिन्य स्थविर नाग, स्थविर नागमित्र, स्थविर षडुलूक रोहगुप्त कौशिक गोत्रीय | स्थविर षडुलूक राहगुप्त से त्रैराशिक निकले, स्थविर उत्तर और बलिस्सह से उत्तरबलिस्मह नामक गरण निकला । उसकी ये शाखाएँ चार इस प्रकार कही जाती हैं जैसे: कौशाम्बिका, शुक्तिमतीया, कौडम्बारणी, चन्द्रनागरी | २० | '
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* कौशाम्बी नगरी से प्रसिद्ध होने वाली शाखा कौशाम्बिका कहलाई । कौशांबी
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