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[ पट्टावली-पराग
कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे अज्जवइरे गोयमसगोत्ते । थेरस्स रणं प्रज्जवइरस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेग-थेरे अज्जनाइले, धेरे प्रज्जपोमिले, थेरे प्रज्जजयंते, थेरे अज्जतावसे। थेरामो अज्जनाइलामो अज्जनाइला साहा निग्गया, थेरानो अज्ज पोमिलानो अज्जपोमिला साहा निग्गया, थेरानो प्रज्जजयतामो अज्जजयंती साहा निग्गया, थेरानो अन्जतावसम्मा प्रज्जतावसी साहा निग्गया इति ॥२०६॥"
'कौशिक गोत्रीय स्थविर आर्य इन्द्रदिन्न के शिष्य स्थविर गौतम सगोत्र प्रार्य दिन्न हुए, प्रायं दिन के स्थविर शिष्य आर्य सिंह गरि कौशिक गोत्रीय हुए, जिनको जाति-स्मरण ज्ञान था। स्थावर प्रार्य सिंहगिरि के स्थविर शिष्य आर्य वज्र गोतमगोत्रीय हुए, स्थविर आर्य वज्र के स्थविर शिष्य चार थे : स्थविर आर्य नागिल, स्थविर आर्य पद्मिल, स्थविर आर्य जयन्त और स्थविर मार्य तापस । स्थविर आर्य नागिल से आर्यनागिला शाखा निकली, स्थविर प्रार्य पछिल से प्रार्यपद्मिला शाखा निकली, स्थविर आर्य जयन्त से प्रार्यजयन्ती शाखा निकली और स्थविर आर्य तापस से प्रार्यतापसी शाखा निकली । २०६'
“वित्थरबायरगाए पुरण अज्जजसभद्दामो परमो थेरावली एवं पलोइज्जइ, तंजहा-थेरस्स रणं प्रज्जजसभहस्स इमे दो थेरा अंतेवासी प्रहावच्चा अभिनाया होत्या तंजहा-धेरे अज्जभद्दबाहू पाईरणसगोत्ते, थेरे अज्जसंभूयविजये माढरसगोत्ते । थेरस्स णं प्रज्जभद्दबाहुस्स पाईणसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी प्रहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं० थेरे गोदासे, थेरे अग्गिदत्ते, थेरे जण्णवत्ते, थेरे सोमदत्ते कासवेगोत्तेणं। थेरेहितो रणं गोदासेहितो कासवगोत्तेहितो एत्य रणं गोदासगरणे नामं गरणे निग्गए, तस्स रणं इमामो चत्तार साहामो एवमाहिज्जति, तं० तामलित्तिया, कोडीवरिसिया, पोंडवद्धणिया, दासीखन्बडिया ॥२०७॥"
'सविस्तर वाचना के अनुसार आर्य यशोभद्र के मागे स्थविरावली इस प्रकार देखी जाती है, जसे : आर्य यशोभद्र स्थविर के ये दो स्थविर अपत्यसमान और प्रख्यात शिष्य हुए, स्थविर मार्य भद्रबाहु प्राचीन
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