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________________ २७६ ] [ पट्टावली-पराग के नाम से उल्लेख करता है, जिनदत्त के प्राचार्य होने के पहले ही जिनशेखर का प्राचार्य के नाम से उल्लेख करता है। जिनदत्त को प्राचार्य का पद प्रदान करने का स्य न जालोर बताता है और जिनवल्लभ के पूर्वगुरु कूर्चपुरीय श्री जिनेश्वरसूरि के जीव को सौधर्म का देव बनाकर उससे जिनदत्त सूरि को सात वरदान दिलाता है और जिनदत्तसूरि के साधु साध्वी समुदाय की संख्या कमशः एक हजार तथा ७०० सौ को बताता है, इन सब बातों पर विचार करने से तो यही ज्ञात होता है कि लेखक, इतिहास किस चिड़िया का नाम हैं ? यह भी जानता नहीं था। सुनी सुनायो और मनःकल्पित बातें लिखकर भले ही लेखक ने अपने मन से जिनदत्तसूरि की सेवा मान ली हो। परन्तु वास्तव में उलने उनकी कुसेवा की है । उनके वास्तविक चरित्र को ढांककर जनता के सामने प्रबन्ध के नाम से एक अपवित्र गन्दे कचरे का ढेर उपस्थित किया है। (६) षष्ठ प्रबन्ध जिनदत्तसूरि के पट्टधर जिनचन्द्रसूरि के सम्बन्ध में संक्षेप में लिखा है । लेखक ने जिनचन्द्र के ललाट में नरमरिण बताया है, वे जैसलमेर की तरफ विचरते थे, दिल्ली नगर के संघ ने उन्हें दिल्ली की तरफ बुलाया, जिनचन्द्र ने लेख द्वारा सूचित किया कि श्री जिनदत्तसूरिजी ने योगिनी पीठोंमें हमारा विहार निषद्ध किया है, फिर भी वे दिल्लीपुर के संघ की अभ्यर्थना के वश होकर योगिनी पीठ में विचरे, प्रवेश महोत्सव में ही योगिनियों ने उन्हें छला और मर गए, आज भी पुरानी दिल्ली में उनका स्तूप विद्यमान है, जिनचन्द्रसूरि के प्रबन्ध का सार उपर्युक्त है । जिनचन्द्र सूरि के ललाट में दीप्यमान मरिण बताया है, इस मरिण का तात्पर्य क्या है ? यह बात समझना कठिन है, मनुष्य का शरीर चर्म से ढंका हुआ होता है, उसके नीचे रहे हुए मरिण का प्रकाश बाहर कैसे आता है, इसका लेखक ने कोई खुलासा नहीं किया। (७) सातवां प्रबन्ध जिनप्रतिसूरि का है। जिनपति १२ वर्ष की अवस्था में पट्ट-प्रतिष्ठित हुए थे, पासीनगर में प्रतिष्ठा का प्रसंग था, बड़ी धूमधाम के साथ जिनपतिसूरि वहां पहुंचे, प्रतिष्ठा का कार्य प्रारंभ हुमा, ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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