________________
१४ ]
[ पट्टावली-पराग
छपा, कल किरणावली के बाद छपने वाली अनेक कल्पटीकानों में "दुण्ह कुला मिहो" यह प्रशुद्ध रूप छपा है जो परिमार्जनीय है ।
१. मूल कल्पस्थविरावली सानुवाद :
"तेरणं कारणं तेरणं समएवं समरस्स भगवम्रो महावीरस्स नव गरगा इक्कारस गरगहरा होत्या ॥ २०१ ॥ "
अर्थ : उस काल और उस समय में श्रमण भगवन्त महावीर के गरण और ११ गणधर हुए ।
"से के रगट्ट गं भंते ! एवं बुच्चई - समरगस्स भगवन महावीरस्स नव गरणा इकारस गरगहण होत्या ? समरणस्स भगवन महावीरस्स जेट्ठ े इंदभूई अरणगारे गोयमे गोत्तेगं पंचसमरणसयाइं वातेइ, मज्झिमे अरणगारे प्रग्भूिई नामेरगं गोयमे गोत्तेगं पंचसमरणसयाई वाएइ, करणीयसे श्ररणगारे नामेगं वाउभूई गोयमे गोत्तेगं पंचसमरणसयाई वाएइ, थेरे प्रज्जवियत्ते भारदाये गोत्तेरणं पंचसमरणसयाई वाएइ, थेरे प्रज्जसुहम्मे श्रग्गिवेसायरणे गोरगं पंचसमरसयाई बाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासि गोत्तेगं श्रधुट्ठाई समसया वाएइ, थेरे मोरियपुत्ते कासवे गोत्तेगं प्रधुट्ठाई समरणसयाई वाएs, थेरे अकंपिए गोयमे गोत्ते, थेरे प्रयलभाया हारियायणे गोत्ते एते दुन्नि थेश तिन्नि तिन्नि समसयाई वाई ति, थेरे मेयज्जे थेरे अज्जपभासे एए दोनिवि थेरा कोडिन्ना गोत्तेगं तिनि तिन्नि समरणसयाइ वाएंति, से एते भट्ट प्रज्जो एवं वुच्चइ- समरणस्स भगवओो महावीरस्स मव गरणा, एक्कारस गरगहरा होत्या ॥ २०२॥ "
'भगवान् महावीर के ε गरण और ११ गरणधर होने की बात सुनकर शिष्य गुरु से पूछता है : 'भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि भगवान् महावीर के नव गरण थे और ग्यारह गरणत्रर ? प्रश्न का उत्तर देते हुए प्राचार्य कहते हैं : भगवान् महावीर के शिष्य जिनका नाम इन्द्रभूति था और जो तीन भाइयों में बड़े थे तथा गोत्र से गौतम थे, ५०० श्रमणों को सूत्रवाचना देते थे । अग्निभूति नामक अनगार जो गोत्र
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org