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प्रथम-परिच्छेद ]
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से गौतम और मझोले थे, ५०० श्रमणों को प्रागम पढ़ाते थे। कनिष्ठ वायुभूति नामक गोत्र मे गौतम थे जो ५०० साधुनों को वाचना देते थे। स्थविर-पार्यब्यक्त जो गोत्र से भारद्वाज थे और ५०० श्रमणों को वाचना देते थे, स्थविर आर्य सुधर्मा जो गोत्र से अग्निवेश्यायन थे और ५०० श्रमणों को बाबना देते थे, स्थविर मंडिकपुत्र जो गोत्र से वासिष्ठ थे और साढ़े तीन सौ श्रमणों को वाचना देते थे, स्थविर मौर्यपुत्र जो गोत्र से काश्यप थे साढ़े तीन सौ श्रमणों को वाचना देते थे, स्थविर अकम्पित गोत्र से गौतम, स्थविर अचल भ्राता गोत्र से हारितायन, ये दोनों स्थविर तीन-तीन सौ श्रमणों को सम्मिलित रूप से वाचना देते थे। स्थविर मेदार्य और स्थविर प्रभास ये दोनों स्थविर गोत्र से कौण्डिन्य थे, और अपने तीनतोन सौ श्रमणों को एकत्र वाचना देते थे। इस कारण से हे प्रार्य ! यह कहा जाता है कि श्रमण भगवन्त महावीर के ६ गण और ११ गणधर थे ।
स्पष्टीकरण :
अाठ तथा नवमें गणधरों के तीन-तीन सौ शिष्य थे परन्तु उनकी वाचना एक ही साथ होती थी। अतः एक गण कहलाता था, इसी प्रकार दसवें तथा ग्यारहवें गणधरों के भो तीन-तीन सौ श्रमण शिष्य थे, परन्तु वे ६००-६०० श्रमण सम्मिलित वाचना लेते थे, इसलिये “एकवाचनिको गणः" इस नियमानुसार पिछले ४ गणधरों के २ ही गण माने गए हैं । परिणामस्वरूप ६ गए और ११ गणधर बताए हैं।
- "जे इमे अज्जत्ताते समरणा नि.गंथा विहरति एए रणं सत्वे अज्ज. सुहम्मस्स अरणगारस्स पाहावञ्चिज्जा, अवसेसा गरगहरा निरवच्या वोच्छिन्ना ॥२०४॥"
"सव्वे एए समरणस्स भगवनो महावीरस्स एकारस वि गणहरा दुवालसंगिरणो चोद्दसपुविवरणो समत्तारणपिडगधरा रायगिहे नगरे मासएरणं भत्तेणं अपालएणं कालगया जाव सम्दुक्खप्पहीणा । थेरे इंदभूई, थेरे अज्जसुहम्मे, सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोनिवि परिनिया ॥२०॥
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