________________
परिशिष्ट (१) तपागच की लघु-अपूर्णा पटावलियाँ
हमारे पास की एक हस्तलिखित लघु तपागच्छीय पट्टावली, जो सुमतिसाधुसूरि के समय की लिखी हुई है, उसमें लिखी हुई कतिपय बातें उल्लेखनीय होने से टिप्पन के रूप में यहाँ दी जाती हैं।
इस लघु पट्टावली में ३१वें पट्टधर श्री यशोदेवसूरि के बाद श्री प्रद्युम्नसूरि पोर मानदेवसूरि को नहीं लिया, सीधा विमनचन्द्र, उद्योतन
और सर्वदेवसरि का नाम लिखा है और सर्वदेव के बाद अजितदेवसूरि, विजयसिंहसूरि, सोमप्रभसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, अजितसिंहसूरि, विजयसेनसूरि और मणिरत्नसूरि का नाम लिख कर जगच्चन्द्रसूरि का नाम लिखा है । मणिरत्नसूरि के पहले के ६ नामों में कुछ गड़बड़ हुआ प्रतीत होता है ।
उद्योतनसूरि के नाम के बाद दिये हुए टिप्पन में विक्रम सं० १००८ में पोषधशालामों में ठहरने का कारण हुमा, ऐसा उल्लेख किया है।
श्री सुमतिसाधुसूरि का नाम लिखने के बाद टिप्पन में लिखा है :
"तेषां शिष्याः श्री हेमविमलसूरयः सम्प्रति विजयन्ते"। हमारी एक अन्य हस्तलिखित पट्ठावली में श्री यशोभद्रसूरि के बाद ४०वा मुनिचन्द्रसूरि का नाम लिखा है, नेमिचन्द्र का नाम नहीं लिखा । पागे अजितदेव नामक ४१वें पट्टधर से ६६वें पट्टधर श्री विजयजिनेन्द्रसूरि तक के नाम लिखे मिले हैं।
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org