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________________ द्वितीय-परिच्छेद ] [ २१७ सं० १८५६ के भाद्रवा सुदि ३ की लिखी हुई एक लघु पट्टावली में पट्टक्रम निम्न प्रकार का है : यशोभद्र के बाद संभूतविजयजी का नाम लिख कर उनके पट्टधर स्थूलभद्रजी को लिखा है, भद्रबाहु का नाम नहीं दिया । उद्योतन और सर्वदेवसरि के नाम लिख कर देवसूरि का ३८वां नम्बर खालो रक्खा है और दूसरे सर्वदेवसूरि का नाम न लिख कर ३६वें पट्ट पर यशोभद्रसूरि को लिखा है। विजयसिंहसूरि के बाद सोमप्रभ का नाम न लिख कर मणिरत्न को ४४वां पट्टधर लिखा है । ५३वें पट्टधर मुनिसुन्दरसूरि के नाम के बाद सीधा लक्ष्मीसागरसूरि का ५४वां नाम लिखा है, रत्नशेखर का नाम छूट गया है। विजयते नसूरि के बाद विजयतिलकसूरि की पट्टावली दी है। एक चौथी हमारी हस्तलिखित लघु पट्टावली, जिसमें २० आचार्यों का पट्टकम नहीं है और बाद में विजयदेवेन्द्रसूरि तक की पट्टावली व्यवस्थित है, आगे का पाट-क्रम का भाग नहीं मिला। यशोदेवसूरि के बाद प्रद्युम्नसूरि तथा उपधान ग्रन्थकार मानदेवसूरि के नाम लिख कर इस पट्टावली में सीधा विमल चन्द्रसूरि का नाम लिखा गया है। उद्योतनसरि के पट्टधर श्री सर्वदेवसूरि का नाम लिख कर सीधा मजितदेव, विजयसिंह, सोमप्रभ, मुनिचन्द्र, अजितसिंह, विजयसेन और मणिरत्नसूरि का नाम लिख कर श्री जगच्चन्द्रसूरि को ४३वां पट्टधर लिखा है, इन नामों में भी खासी गड़बड़ी हुई है। ___ इस पट्टावली में विजयसेनसूरि के समय में विक्रम सं० १२०१ में चामुण्डिक गच्छ, सं० १२१४ में प्रांचलिक गच्छ; ११५६ में पूणिमा पक्ष और सं० १२५० में आगमिक गच्छ प्रकट होना लिखा है । हमारी एक लिखित पट्टावली में इन्द्रदिन्न के बाद सिंहगिरि का नाम दिया है। इसी तरह विक्रमसूरि के बाद नरसिंहसूरि का नाम नहीं ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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