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________________ २०६ ] [ पट्टावली-पराग - ६४ भाचार्य श्री विजयऋद्धिसूरि - आबु के पास थांरण गांव में सं० १७२७ में जन्म, सं० १७४२ में अहमदाबाद में दीक्षा, सं० १७६६ में सिरोही में प्राचार्य-पद, १७९७ में स्वर्गवास । ६५ प्राचार्य श्री विजयसौभाग्यसूरि - प्राचार्य श्री विजयप्रतापसूरि - सं० १७९५ में प्राचार्य-पद सादड़ो में, १८१४ में सिनोर में स्वर्गवास । इन्होंने अपने पट्ट पर विजयभानसूरि को बैठाया। ६६ प्राचार्य श्री विजयउदयसूरि - जन्म वांकली गांव में, प्राचार्य-पद मुडारा में, गुजरात में उदयसूरि ने सपरिवार जाकर काकागुरु सौभाग्यसूरि से. मिलकर भागे दक्षिण में विहार किया और सं० १८३७ में स्वर्गवासी हुए। ६७ प्राचार्य श्री विजयलक्ष्मीसूरि - सिरोडी और हणादरा के बीच में सिरोडी से दक्षिण में १ कोस और हणादरा गांव से उत्तर में दो कोस पर पालडी गांव में सं० १७९७ में जन्म, सं० १८१४ में नर्मदा तट पर सिनोर में दीक्षा, उसी वर्ष सूरि-पद, सं० १८५८ में सूरत में स्वर्ग-गमन । ६८ प्राचार्य श्री विजयदेवेन्द्रसूरि - सूरत में जन्म, सं० १८५७ में प्राचार्य-पद बड़ौदा में, प्रहमदाबाद में सं० १८६१ में स्वर्गवास । ६६ प्राचार्य श्री विजयमहेन्द्रसूरि - भीनमाल में जन्म, सं० १८२७ में प्रामोद में दीक्षा, सं० १८६१ भट्टारक-पद, सं० १८६५ में स्वर्गवास । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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