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________________ विजयानन्दसूरि-10 की परम्परा (१) ५६ प्राचार्य श्री विजयसेनसूरि - ६० प्राचार्य श्री विजयतिलकसूरि - जन्म सं० १६५१, दीक्षा सं० १६६२, पं० १६६३, सं० १६७३ में सिरोही में वडगच्छ के भट्टारक विजयसुन्दरसूरि के वासक्षेप से सूरि-पद दिया था और उपाध्याय आदि ने मिलकर प्राचार्य श्री विजयसेनसूरि के पट्ट पर विजयतिलकसूरि के नाम से प्रतिष्टित किया। स्वर्ग सं० १७७६ में। ६१ प्राचार्य श्री विजयानन्दसूरि - मारवाड़ के रोहा गांव में सं० १६४२ में जन्म, सं० १६५१ में दीक्षा, सं० १६७६ में सिरोही में विजयतिलक सूरि द्वारा प्राचार्य-पद, सं० १७११ में स्वर्गवास । ६२ प्राचार्य श्री विजयराजसूरि - सं० १६७६ में कडी में जन्म, सं० १६८६ में दीक्षा, नाम कुशलविजय, सं० १७०४ में सिरोही में विजयानन्दसूरि द्वारा प्राचार्य-पद, सं० १७४२ में खम्भात में स्वर्गवास । ६३ प्राचार्य श्री विजयमानसूरि - सं० १७०७ में बुरहानपुर में जन्म, सं० १७१६ में मालपुर में दोक्षा, वि० सं० १७३१ में उपाध्याय-पद, सं० १७३६ में सिरोही में विजयराजसूरि के हाथ से सूरि-पद, सं० १७७० में साणंद में स्वर्गवास । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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